तत्त्व - चिन्तामणि भाग 5 | Tatva Chintamani-5

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Tatva Chintamani-5 by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामके गुण और चरित्र. ७ नारियोंको नेत्रोंका परम छाम प्रदान करनेके लिये जनकपुरमें जाते हैं | वरहो कुक देर हो जाती है, तत्र मनम संकोच करते है कि गुरुजी कहीं नाराज तो न होंगे | इस प्रसङ्गे श्रीतुक्सीदासजी कहते है कौतुक देखि चले गुरु पाहीं। जानि विलंबु त्रास मन माहीं | जासु त्रास डर फूं डर होई। भजन प्रमाउ देखावत सोई ॥ समय सम्म विनीत अति सङ्कच सहित दोउ भाई । गुर पदं पंकज नाद्‌ सिर वेठे आयसु पाह ॥ रातको दोनों भाई नियमपूर्वक मानो ग्रेमसे जीते हुए प्रेमपूर्वक श्रीयुरुजीके चरणकमल दबाते हैं--- तेद दोउ वंध प्रेम जनु जीते । गुर पद कमरु परोत प्रीते ॥ मुनि श्रीवरिष्ठजी अपकरे कुलपुर हैं। आप सव प्रकारसे गुरुकी सेवा करनेमें मानो अपना सौमाग्य समझते हैं| वनम जव वशिष्ठजी भरतजीका पक्ष लेकर भगवानसे कहते हैं-.- सब के उर अंतर बसहु जानहु भाउ कुमाउ | पुरजन जननी भरत हित होई सो कहिअ उपाड ॥ -तव्र भग्तरान्‌ श्रीमरतजीपर गुरुका स्नेह देखकर भरतजीके माग्यकी सराहना करते इए कहते हैं- जे गुर पद अंबुज अनुरागी । ते रोकं बेदहूं वड़मागी ॥ राउर जा पर अस अनुरागू । को कटि सकद भरत कर मागू॥। धजो मनुष्य गुरुके चरणकमटकि प्रेमी हैँ वे रोक ओर वेद दोनोंमें बडभागी हैं | फिर जिसपर आपका ऐसा स्नेह है, उस




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