श्रावक धर्म - संहिता | Sravak Dharam Sanhita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अतोदि विघतत्व | पक हुये सत्कर्म एवं कुकर्म के ग्राधीन है । जीव ही संसार (अपने जन्म-मरण)-का कर्सा ब्रह्मा, पोषक विष्णु और नाशक महैश है | खुद या ईश्वर आदि किसी को संसार का उत्पादक, पोषक और नाशक मानता युक्ति-विरुद्ध है, सथा ऐसा मानने से कई दोष भी उत्पन्न होते हैं । है । सृष्टि का भ्रनादिनिधनत्व यदि ऐसा माना जाय कि बिना कर्त्ता के कोई कार्य होता नही दिखता, इसी हेतु से सृष्टि को ईश्वर या खुदा श्रादि किंसी ने बनाया है। तो यहाँ यह शद्धा उत्पन्न होती हैं कि सृष्टि बनने के पूर्व कुछ था या नही ? इसका उत्तर यही होगा कि ईश्वर के सिवाय और कुछ भी नहीं था; क्‍योंकि जो ईश्वर के सिवाय प्रृथ्वी जल आदि होना माना जाय तो फिर ईश्वर ने बनाया ही क्या ? भ्रतएव श्रकेला ईदवर ही था । यहाँ प्रश्न उत्पन्न होता है कि जव बिना कर्त्ता के कोई भी कार्य न होने का नियम है तो ईश्वर भी तो एक कार्य (वस्तु) है, इसका कर्त्ता होना भी जरूरी है। यहाँ कोई कहे कि ईश्वर अ्रनादि है इसलिए उसका कर्ता कोर नही । भला जब अनादि ईश्वर के लिए कर्त्ता की आवश्यकता नहीं तो उपर्युक्त पट्द्रव्य युक्त अनादि सृष्टि का कर्त्ता मानने की भी क्या जरूरत है ? श्रौर यदि ऐसा माना भी जावे कि पहले ईश्वर अकेला था और पीछे उसने सृष्टि रचो तो सृष्टि रचने के लिए उपादान सामग्री क्या थी श्र वह कहाँ से झ्राई ? अथवा जो ऐसा ही मान लिया जाय कि ईह्वर तथा सुष्टि बनने की उपादान सामग्री दोनों अनादि से थी, तो प्रश्न होता है कि निरीह (इच्छारहित, कृतकृत्य) ईश्वर को सुष्टि रचने कौ भावस्यकता क्यों हुई ? क्योकि विना किसी प्रयोजन के कोई भी जीव कोई भी कायं नही करता । यहाँ कोई कहे कि ईह्वर ने अपनी प्रसन्नता के लिए सृष्टि रचने का कौतूहल किया, तो ज्ञात होता है कि सृष्टि के बिना भ्रकेले ईश्वर को बुरा (दुःख) लगता होगा ? इसीलिए जब तक उस ने सृष्टि की रचना नही कर पाई तब तक वह दुखी रहा होगा सो ईश्वर को दुखी और अक्ृतकृत्य मानना सर्वथा ईश्वर की निन्‍्दा करना है। फिर भी जो कोई कुछ भी कार्य करता है वह इष्ट-रूप सुहावना ही करता है, सो सृष्टि मे सुखी तो बहुत थोड़े और दुखी बहुत जीव दिखाई देते है, इसी प्रकार सुहावनी बस्तुएँ तो थोड़ी भौर कुरूप, भयावनी, घिनावनी बहुत देखने में श्राती हैं जो कर्ता की अज्ञानता की सूचक हँ । इस प्रकार ईए्वर को सृष्टि कर्ता मानने में पऔौर भी अनेक दोष श्राते हैं। फिर सभी कर्त्तावादी बहुधा ईश्वर को




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