गांधीजी की छत्रछाया में | Gandhiji Ki Chatrachaya Mein

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रास्ताविक ११ चार वर्ष की आय में मे पढाने को एक ऐसे अध्यापक रखे गये, जो लिखाई-पढाई की अपेक्षा हिसाव अधिक जानते थे। इस प्रकार मेरी शिक्षा का आरम्भ अको के साथ জা बाकी, गणा, भाग आदि । नौ वर्ष की आय में मेने थोडा- वहुत लिखना-पढना सीख लिय्य। कुछ अग्रेजी भी आा गईं किस्तु मेरी स्कूली शिक्षा का अन्त प्यारेचरण सरकार द्वारा लिखित अग्रेजी की पहली पुस्तक (फर्स्ट वुक आँव रीडिग) के साथ ही हो गया। उस समय में ग्यारह वर्ष का था। मेरे परदादा एक व्यापारी के यहाँ दस रु० मासिक पर सैने- जरी का काम करते थे। उनकी मत्य हो जाने पर मेरे दादाजी ने अठारह वर्ष की आय में अपना निजी व्यापार चछाने का निरचय किया और किस्मत आजमाने वम्बई चल गये । वाद मे मेरे पिता- जी ने काम-काज बढाया और जब मेरा जन्म हुआ, उस समय तक हम लोग काफी सम्पन्न समझे जाने छगे थे। हमारे पेतीस वपं प्राने कारवार की जड उस समय तक अच्छी तरह जम चकी थी | इसलिए जब मेरे तथाकथित स्कूली जीवन का अन्त हुआ तो मभसे खान्दानी कारवार में हाथ वटाने को कहा गया और बारह वर्ष की उम्र मे ही में उसमें छग गया। पर मुझे विद्या से लगन थी, इसलिए स्करू छोडने के बाद भी म॑ अपनी शिक्षा स्वय चलाता रहा । न मालम क्यों, मुझे किसी अध्यापक द्वारा पढने से चिढ थी। इसलिए स्कूछ छोडने के वाद पुस्तकों और अखवबारो के अछावा एक शब्दकोप और कापीबुक ही मेरे मुख्य अध्यापक रहे। इसी ढग से मेने अग्नेजी, सस्कृत, एक-दो दूसरी भारतीय भाषाएं, इतिहास और अर्थ्ञास्त्र सीखा और काफी जीवनिया तथा यात्रायो के विवरण भी पढ डाले। मेरा यह मर्ज आज भी ज्यो-्काः त्यो बना हुआ ह । सम्भव हं, इस पठन-पाठन द्वारा ही मुझे देश की राज- नीतिक स्वतत्रता के लिए काम करने गौर उस समय के राज-




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