हिंदी साहित्य का इतिहास | hindi sahitya ka itihaas

hindi sahitya ka itihaas by पं. रामशंकर शुक्ल ' रसाल ' - Pt. Ramshankar Shukl ' Rasal '

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५) काल संवत्‌ १००० से १४०० तक, मध्यकाल संवत्‌ १४०० से १८०० तक और आधुनिक काल १८०० से आज तक । हमारी अनुमति में यह काल-विभाग वहुत युक्तिब्युक्त प्रतीत नहीं होता; क्योकि ठेसा विभाग किसी भी भाषा के इतिहास का किया जा सकता है। हिन्दी की विशेषताओं पर ध्यान देते हुए जो विभाग हमने (सिश्र-्वन्धु-विनोद' में किये हैं, हमको वे ही अब भी ठीक जँचते है। अपने ग्रंथ में ठोर २ पर शुक्त जी ने राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक दशाओं का विशेष वर्णन करके खूब ही दिखला दिया है कि इनका प्रभाव हमारे साहित्य पर कव कब ओर कैसा पड़ा है। इनका उल्लेख आपने आलोचक-दृष्टि से ही किया है न कि किसी री लकीर के पक्रीर होकर ! आपका विषय-विवेचन एवं वर्णन- अत्यन्त हीश्लाघ्य है। यद्यपि हम आपकी सभी अनुमतियों से सहमत नही, परन्तु मानना पडता है कि केवल खंडन-मंडन फ विचार से श्रापने मत-भेद्‌ आवश्यक नहीं सममा है वरन्‌ जहाँ आप अन्य लोगो के मतो का खंडन भी करते दै वहां आप शिष्टता ओर सभ्यता के केन्द्र से एक इब्च भी बाहर नहीं मिकलते। : आपको शोक है कि हिन्दी भाषा व्याकरण के अठल्त नियमों से वद्ध नहीं को जा सकी ( देखिये प्र॒ष्ठ ३८९ )। यहाँ तक कि महात्मा कबीरदास तक की उनकी “अ्ुद्धियो ॐ कारण आपने , काफी खबर ली है देखिये प्रष्ठ १७० च १७१) , लेकिन हम इससे ` सहमत नहीं हो सकते । एक तो भारी भारी कबिगर व्याकरण से अधिक बद्ध माने ही नहीं जाते, यहाँ तक कि अँगरेजी मे कविवर शेक्सपियर की निरंकुशता के कारण शेक्सपियर का व्याकरण (9॥9088580180 01097. अलग से लिखा गया है इससे हिन्दी का यह सौभाग्य है कि अभी तक वैयाकरणों के पेंच मे वह नदीं आ सको है। यदि हम लोगो का यही अभीष्ठ हो कि ' व्याकरण के जटिल नियमो से वैध कर हिन्दी एक प्रकार की दूसरी ' संस्कृत भाषा बन कर अपनी चिता बनाने को तय्यार हो जाय




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