आध्यात्मिक शिक्षावाले (दूसरा खंड) | Adhyatmik Sikshawale Volume -ii

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Adhyatmik Sikshawale Volume -ii by श्री स्वामी शिवानन्द सरस्वती - Shri Swami Shivanand Sarasvati

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री स्वामी शिवानन्द सरस्वती - Shri Swami Shivanand Sarasvati

Add Infomation AboutShri Swami Shivanand Sarasvati

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ শর] मुहसे, उसी प्रकार अज्ञानी सांसारिक मलुष्य सूखंतासे यह समभते हैं कि ऐन्द्रिक विषयोंमें खुख प्राप्त होता है. जबकि सत्य यह हैं कि जिन क्षणोंमें चासनाओंकी तृप्तिके बाद मन आत्मा की ओर अग्नसर होता है उन क्षणोंमें आत्मासे ही चह झखुख निकलता है। जब आप प्रगाढ़ निद्रामें होते हैं तब आप ईश्वरमें लीन रहते हैं | जब आपकी चासनायें तृप्त होती हैं तब भी आप ईश्वरमें निवास करते हैं। जब आप किसी विपयका उपभोग करते है तच भप मन विहोन हो जाते हैं | पक फेसी वस्तु है जो शाश्वत अपरिव्तंनशील अमर है । वहं समय, स्थान, कारण सबसे परे है। वह स्वयंभू है, स्वतन्त्र हे । स्वयंम प्रकाश है । सत्चित्‌ आनन्द है। आप परम सत्यका साक्षात करके अनन्त खुख और शान्ति प्राप्त कर सकते हैं। महपि याज्ञवस्क्यने जंगल जाकर जीबन्मुक्तिका खख उठाना चाहा | उन्होंने अपनी दो पत्नियों मेत्रेयी और कात्या- यनीको घुलाया। अपनी सम्पत्ति वराबर-वराचर बांट कर -दोनोको दै दौ । साध्वी मैत्रेयीने पूछा-मेरे स्वामी ! क्‍या यह सम्पत्ति मुझे अमरत्व प्रदान कर सकती है! याशवव्क्‍्यने जवाब दिया इससे अमरत्व नहीं मिल सकता। तब फिर मैत्रयीने कहा - मुझे तो अमरत्व प्राप्त करनेका उपाय चताइये। प्रत्यु- त्तरमें याक्षवद्यपते कहा--इस आत्माको देखो, सुनो, इसपर अनन कसे भौर इसका ध्यान करो तभी अमरत्व प्राप्त कर सकती हो |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now