श्रीमथुरेश विनय | Shrimathuresh Vinay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११ )
( आ० ) प्रण काम धाम करुणा के भी प्रभु श्यमा स्याम ।
दीन बन्धु तुम दोउ कृहावत कोउ न आप समान ॥
॥। বিলষ জুন ভাঈ০0 `
विषयन में अनुरक्ति हमारी होत विराक्ति नाहिं।
भक्ति भीक हों तुमसे माँयूं शाक्ति दान की जान ॥
॥ विनय सुन लॉजि० ॥
प्रीत किये तें प्रीतम रीझे यह सब जग की रत ।
उपजै प्रीत कृपा विन कैसे कृठिन बनी यह आन ॥
॥ विनय सुन छीजै० ॥ ह
' में तुमरो हूं एकः बार जो मुखतें लेत उचार।
ताहि तुरत प्रभु अमयंदततुम अस दयालकों आन ॥
0 विनय सुन लीजे० ॥
' औशुन मेरे हैं अनन्त प्रश्न तुम अनन्त गुण खान ।
तम दुस्तको अन्त तुरन्त हि होत उदितिमये भान ॥
॥ विनय सुन लीजे० ॥
मथ्रा शरण तिहारी लीनी कीनी बहुत पुकार ।
झांकी युगल देंहु रज़्भीनी दीजे येही दान ॥
॥ विनय सुन लीजे5 ॥
(মৃত)
( १६०) युंगलवर मेरी भी अरज्ञी सुनौ अबतो दया करके।
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