श्रीमथुरेश विनय | Shrimathuresh Vinay

Shrimathuresh Vinay by मथुराप्रसाद - Mathuraprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११ ) ( आ० ) प्रण काम धाम करुणा के भी प्रभु श्यमा स्याम । दीन बन्धु तुम दोउ कृहावत कोउ न आप समान ॥ ॥। বিলষ জুন ভাঈ০0 ` विषयन में अनुरक्ति हमारी होत विराक्ति नाहिं। भक्ति भीक हों तुमसे माँयूं शाक्ति दान की जान ॥ ॥ विनय सुन लॉजि० ॥ प्रीत किये तें प्रीतम रीझे यह सब जग की रत । उपजै प्रीत कृपा विन कैसे कृठिन बनी यह आन ॥ ॥ विनय सुन छीजै० ॥ ह ' में तुमरो हूं एकः बार जो मुखतें लेत उचार। ताहि तुरत प्रभु अमयंदततुम अस दयालकों आन ॥ 0 विनय सुन लीजे० ॥ ' औशुन मेरे हैं अनन्त प्रश्न तुम अनन्त गुण खान । तम दुस्तको अन्त तुरन्त हि होत उदितिमये भान ॥ ॥ विनय सुन लीजे० ॥ मथ्रा शरण तिहारी लीनी कीनी बहुत पुकार । झांकी युगल देंहु रज़्भीनी दीजे येही दान ॥ ॥ विनय सुन लीजे5 ॥ (মৃত) ( १६०) युंगलवर मेरी भी अरज्ञी सुनौ अबतो दया करके।




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