द्रव्य संग्रह | Dravya Sangrah

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : द्रव्य संग्रह  - Dravya Sangrah

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बाबू सूरजभानुजी वकील - Babu Surajbhanu jee Vakil

Add Infomation AboutBabu Surajbhanu jee Vakil

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
{ १3 ] ३--काय-पृथित्री काय, मद्काय, तेनकाय, वायुकराय, वनस्पति काय ओर प्रप्तकाय इस प्रकार छे प्रकार की का हैं-एक्रेंद्री के सिवाय सत्र जीव श्रम्त काय हैं बनत्पति काय के जीव दो प्रकार के हैं एक प्रत्यक्ष अथात एक वृक्ष में एकही नीक, दूसरे साधारण अथोत्‌ एक बनस्पति में. अनन्त जीव, यह अनन्त जीव एक साथ हीं पेदा होते हैं ओर एक साथ ही मरते हैं ओर स॒त्र एक साथ ही प्तांस लेते हैं, नितनी তি देर में हम एक सांस छेते हैं उतनी देर में इन जीवों का १८ बार जन्‍म मरण हो नाता है यह जीव निगोदिया कहाते हैं । ¢ ४--योग-शरीर के सम्बन्ध से आत्मा का हिडना योग कहवाता है संप्तारी जीव के सवै शारीर मे जीवात्मा व्याप रहा हँ इर हंतु शरीर के हिलने से आत्मा में मीं इछन चछन होना है वह तीन प्रकार है १ मन में किसी प्रकार का विचार करने ते २ बचन बोढने से ३ काया को क्रिप्ती प्रक्रार हिलाने से इस कारण योग तीन प्रकार हें-मन, बचन और काय । [विस्तार रूप से योग मागेणा के पंद्रह भेद हैं-। 4--वेद-निम्तके उदय से मैथुन करने की इच्छा होती है তর কী वेद कहते हैं उप्तके ३ भेद हैं पुरुष, स्त्री ओर नपुंत्क ॥ नारकी और सम्मूठनन जन्मवाहे जीव सर ৮৬ ৯৬ ২ नपुँपक ही होते हैं-देव नपुंप्क नहीं होते वाक़ी जीव तीनों प्रकार के होते हैं । ६ क्रपाय-क्रोष, मान, माया, छोम यह चार कपाय हैं और १ हास्य अथोत्‌ हंसी २ रति अथीत्‌ प्यार प्रसन्नता ३ अरति अथीत्‌ अप्रपन्नता, नाग़जी ४ शोक अथीत्‌ रन ५ भय स्यात्‌ डर ६ जुगुप्सा अथात्‌ रछानि नफूरत ७ पुरुषवेद अथात्‌ स्त्री से भोग की इच्छा ८ स्त्रीविद्‌ अथात्‌ पुरुष से मोग की इच्छा ० नपुप्तक वेद अथोत्‌ पुरुष ओर स्त्री दाना से भांग का इच्छा इस प्रकार यह ९ দান ₹-লা का अभ हे न्युन अथात्‌ कमती मान, माया, सेम ओर क्रोध से यह कपाय कमती हैँ इस कारण इनको नोकपाय कहा है- मान, माया, छोम और क्राध इन चार कपायों के चार ३ भेद किये गये हैं १ अनन्तानुवन्ची जो सम्यक्त न हने द (२) भप्रत्यास्यानी नो दश्च चारित्र अथात्‌ गृहस्ती आवक.का धरम मी न पाठने दे (३) प्रत्याख्यानी नो देच चासि तो हेन दे परन्‍्त मनि घमर अथात सकल चारित्र न होने दे (४) संज्वढ़न जों सकल चारित्र तो होने दे परन्तु यथार्यात चारित्र न होने दे इस प्रकार चार कपाय के १६ भेद्र और ९ नोक्रपाय मिख्कर २९ प्रकार की कषाय मागणा हं। ७ ज्ञान भाठ प्रकार हैं निम्तका वणन गाथा पांचवीं में हो ८-संयम--संम्यक्‌ प्रकार यम नियम पालने को सयम करत भरिता चुका है ©




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now