आराधना - कथाकोष तीसरा भाग | Aaradhana-kathakosh part-3
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
488
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कथाकोश । 11
है कि अपने यहाँ उत्पन्न हुए रत्नके मालिक आप हैं, पर
एक कन्या-रत्नको छोड़कर ! उसकी माढिकी पिताके नाते-
से ही आप कर सकते हैं, और रूपमें नहीं।मेनसाधुओंका यह
हितमरा उत्तर राजांको घडा बुरा गा, ओर गनां शै
चाहिए; क्योकि पापियोको हितकी बात कव सुहाती है १ रानाने
गुरसा होकर उन शनिर्योको देश बाहर कर दिया ओर् अपएनी
ठदकीफे साथ सर्य व्याह कर छिया । सचरै, जो पापी है,
कामी हैं और निन आगामी दुर्गतिम दुल उना है
उनमें कौ धर्म, कँ रान, कद तीति-सदाचार ओर
कहाँ सुबुद्धि
कुछ दिनों बाद कृत्तिकांके दो सन्तान हुईं.। एक लड़का
और लडकी.। छड़केका त्राम-थाकार्विकेय ओर रूड़कीका वार्
पती । वीरमती पड़ी खूबसूरत थी। उसका ब्याह रोहेड़ नगरके
राजा क्रोंचके साथ हुआ | वीरमती वहां रहकर सुखके साथ
` दिन बिताने लगी।
इधर कार्तिकेय भी बड़ा हो गया । अब उसकी उपर कोई
, चौदह बरसकी हो गई थी। एक दिल कार्तिकेय अपने साथी
और राजक्षुमारोंके साथ खेल रहा था | वे सब अपने नानाके
ग्रहोँसि आये हुए अच्छे अच्छे. कपड़े ओर गहने पहर
हुए थे। पूछने पर कार्पिकेयको नान पड़ा कि वे वन्ञामरण
उन सव राजाकृमारोकेः नाता-पामाके यर्हेसे अथि ६ ।
तब उसने अपनी मासे जाकर .पूछा-क्यों मा, पेरे साथी राज-
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