आराधना - कथाकोष तीसरा भाग | Aaradhana-kathakosh part-3

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Aaradhana-kathakosh part-3 by उदयलाल काशलीवाल - Udaylal Kashliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कथाकोश । 11 है कि अपने यहाँ उत्पन्न हुए रत्नके मालिक आप हैं, पर एक कन्या-रत्नको छोड़कर ! उसकी माढिकी पिताके नाते- से ही आप कर सकते हैं, और रूपमें नहीं।मेनसाधुओंका यह हितमरा उत्तर राजांको घडा बुरा गा, ओर गनां शै चाहिए; क्योकि पापियोको हितकी बात कव सुहाती है १ रानाने गुरसा होकर उन शनिर्योको देश बाहर कर दिया ओर्‌ अपएनी ठदकीफे साथ सर्य व्याह कर छिया । सचरै, जो पापी है, कामी हैं और निन आगामी दुर्गतिम दुल उना है उनमें कौ धर्म, कँ रान, कद तीति-सदाचार ओर कहाँ सुबुद्धि कुछ दिनों बाद कृत्तिकांके दो सन्तान हुईं.। एक लड़का और लडकी.। छड़केका त्राम-थाकार्विकेय ओर रूड़कीका वार्‌ पती । वीरमती पड़ी खूबसूरत थी। उसका ब्याह रोहेड़ नगरके राजा क्रोंचके साथ हुआ | वीरमती वहां रहकर सुखके साथ ` दिन बिताने लगी। इधर कार्तिकेय भी बड़ा हो गया । अब उसकी उपर कोई , चौदह बरसकी हो गई थी। एक दिल कार्तिकेय अपने साथी और राजक्षुमारोंके साथ खेल रहा था | वे सब अपने नानाके ग्रहोँसि आये हुए अच्छे अच्छे. कपड़े ओर गहने पहर हुए थे। पूछने पर कार्पिकेयको नान पड़ा कि वे वन्ञामरण उन सव राजाकृमारोकेः नाता-पामाके यर्हेसे अथि ६ । तब उसने अपनी मासे जाकर .पूछा-क्यों मा, पेरे साथी राज-




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