राज्यश्री | Rajya Shree
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम अंक
ध ` ^
देव-मंदिर में राज्यश्री
दान के उपकरण और सिक्ठ उपस्थित हैं
राब्य०--( मिछओं की वस्त्र ओर घन देती है--शांतिदेव सामने
आता है )-तुम्हारा शुभ-नाम भिक्ु ९
शांतिदेव-- जय हो ! मेरा नाम शांतिभिह्लु, . .......
रुक कर राज्यश्री की ओर देखने लगता है
राज्यश्री-मिक्षु, तुमने अवज्या प्रहण कर ली है, किन्तु
तुम्हारा हृदय अभी.... ...... -* '
शांति० --कल्याणी ! में, मेरा अपराध--
राज्यश्री--हाँ तुम ! मिश्ु ! तुम्हें शील-सम्पदा नहीं मिली,
जो सर्व-प्रथम मिलनी चाहिये 1 हे
शांति-मैं सब ओर से दरिद्र हूँ देवि !--( स्वगत )--विश्व
में इतनो विभूति १ और में--सिर ऊँचा करके अत्यंत उँचाई की
ओर देखता हुआ केवल उलठा होकर गिर जाता हूँ--चढ़ने की
कौन कहे !
राज्य०--क्या सोचते हो, सिद्लु !
शांति०--केवल अपनी क्षुद्रता--
राज्य०--तुम संयत करो अपने मन को भिक्लु ! श्लाघा और
“ आकांक्षा का पथ तुम बहुत पहले छोड़ चुके हो । यदि तुम्दारी
२१
User Reviews
No Reviews | Add Yours...