साहित्य - प्रारम्भिका | Sahitya - praranbhika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
आई थी जिसके साथ व चला गया था। इसने उस जमानमें
शिक्षा पाने के उपरान्त अपना जीवन भगवत भजन में अर्शि
फर दिया था, उससे भगवत गीता, अ्रध्यत्म रामायग
एड्ाद्राराव, ट त्राहि एमन का गुजगता मे 'प्रनुवाद 9
इसके पा मे रस, शब्दालभझार, आदि स्वाभाविक रूप से)
ग्राज्ञाते हैं ।
उसके पर्दों में लोगों दो तथा गाने वाने को खूब रस तथा
परेरा मिली, एव कारणत लोक विय हो गया था । उसकी
शेतरी बहुत ही प्रिय तथा शान-पूर्ण है और वह भगवान म
भगीे हुई € 1 पढ़ लिखता हैं ।
एर्नि मारग दशनो, नदी कायर म न्नाम तनि!
प्रेम नो पथ न्याग मेधी, प्रम नो पय द्धे स्यार)
भक्ति ज़ग मां फरे नर सोइ, আক গর অহ হাল ন চাহ
प्रीतमदास # पराम मच्रिचार, उची परेरा, ३ साथे
यहुत हैं सुन्दर फाव्य शक्ति हूँ ।
प्री हपरान्य दयाराम सता हैं । यह सांथारिक था
तथा भोग व्िचास में रमता रहा था | কিন্ত নানান
पी फतियों प्रीतमद्रास से खधिण दिप्ट है शौर श्रान्त भी
गुतरानी লা? বক্তা वद्र मून्य नथा श्रादरग् ह]
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