रूस में पच्चीस मास | Roos Me Pachees maas

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Roos Me Pachees maas by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ইন में छ धा-उम्मीद कायम |” हम हिसाव धांध रहे थे “रोज डेढ तुमान की रोटी, मकखन, खजूर पर नार शौर इन्सान के बेटे पर सरोसा । चार तुमान रोज से ज्यादा नहीं खर्च करना होगा | १६० तुमान में १० दिसम्बर तक चलायेगे | तत्र सो ३२ सुमान बच जायेगे। अंग्रठी शोर रिस्टवाच्र की जंजीर के तीन तोले सोने पर तीन मास शोर खपा देगे। १० फावगी तक यहाँ इन्तिजार कर सकते हैं ।” वीजा न पिला तो ? सविष्य प्रकाशमान नहीं था | अगले दिन ( ११ नव्रम्बर ) १० पींड मुनाना जरूरी था। अख्बासी का १५ तुमान उधर्‌ থা, भ्ुनाकर १२८ में से श्रत्वासी को १४ देने लगा, तो उन्होंने ५० तुमान किसी जल्दी के काम के लिये माग लिये ओर मेने सहज साथ में दे दिये । शव हाथ में ६३ तुमान तया ५ पोंडका चेक रह गया { वीजा के बारे मे दीड-यूप करने पर उस दिन की डायरी में लिखना पडा, “अपने वारे गतो चमी গ্সাসা की किस्ण नहीं दिखलाई पहती |” डेढ़ तुमान रोज पर गुजाग करने का निश्चय कर चुका था, किन्तु / १२ नवम्बर ) को तीन तुम्ान गर्मावा (स्नानागार ) को हो ठेना पडा | १३ नत्रम्धर तक श्रम्वरामी से परिचय चार दिन का हो गया था शोर उनके कई टोष-गुख सालूस हो गये थे । उनको ठिए पचास तुमानों के लौण्नेकी दाशा नहीं घी. उपर से दो मास के घाकी फिसये के ६० तुमान के ढेनदार भी बनने जा रहे थे ! लेन अब्याती का दसरा भी पहलू था, जिससे वह सच्चे मानवपुत्त जंचते थे | बह बहुत अधिक नहीं बोलते थे, साथ ही बहुत अत्पमापी सी नहीं थे। “न शंक अपि सत्य स्थात्‌, पुरुषे बहुसापिणी” के अनुसार उनवी बातों में विन्फुल सत्य का वोई अंश ही नहीं घा, यद्र बात नहीं थी, तों भी उस जंगल में से सत्य को ईंट निकालना मुश्किल काम था | यदि £ नवम्बर को श्रस्वासी मिले थे, तो अगले दिन श्रागा दीमियाद के यदां दृष मान्वपुग्र मिज महमद अस्पहानी से सी परिचय प्राप्त हुआ |




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