गोविन्द स्वामी | Govind Sawami

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Govind Sawami by कंठमणि शास्त्री - Kanthmani Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ७ 4 इनके माता-पिता वा पारिवारिक जीवन के सम्बन्ध में विशेष वृत्तान्त ज्ञात नहीं हुआ है ! इतना कहा जा सकता है किये सम्प्रदाय- प्रवेश के पूर्वे अहस्थ थे और उनकी एक पुत्री भी थी । कानन्‍्हवाई नामक इनकी एक वहिन थी, जो श्रीगुसाई'जी की शिष्या होगयी थी ओर इन्हीं के साथ इनकी विसक्तावस्था से गोकुल, महावन में रहती थी । ये जाति के सनाढय ब्राह्मण ( सनोड़िया ) थे | इनका অল্ম- स्थान वर्तमान भरतपुर राज्यान्तर्गत आंतरी ग्राम था । गृहस्थ-त्याग के अनन्तर ये बज में गोकुत् के समीप मदह्यावन-ग्राम में ऊँचे रीले पर रहते थे । इनके प्रारस्मिक जीवन और शिक्षा के सम्बन्ध से सी विशेष ज्ञात नहीं । किन्तु इतना निश्चित है कि ये साधारणत पढ़े लिखे अवश्य होगे और सत्सज्ञ तथा अनुभव से बहुश्रत ज्ञान इन्हे प्राप्त था । मुख्यतः तो ये काव्य एव सज्ञीत शास्त्र के उच्च कोटि के विद्वान थे। गान-विद्या के आचाय और त्यागी विद्धान्‌ सन्त होते के नाते इनके अनेक शिष्य थे, इसीलिये ये 'स्वासी' कहलाते थे । रज्ञ मे रह करये मगवज्जन और कीतंत करते थे। स्वरचित पढों को ये प्रायः सहावन के टीलों पर वा पुछरी के समीप म्यामठाक पर शाशघ्लोक्त विधि से सम्वर गाया करते थे और सुविख्यात थे | सड़ीत कल्ला में ये इतने निपुण थे कि हरिदासस्वामी के शिष्य सम्राट अकबर के सुप्रसिद्ध राजगायक्त नवरत्न तानसेन प्राय. इनसे गाना सीखने आया करते थे ओर इन्हीं की प्रेरणा से तानसेन श्रीगुसाई'जी के शरणागत हुए। श्रीगुसाई जी इनके पदों और उनके गायन की शेली पर इतने मुग्ध थे कि जो व्यक्ति इनसे पद सीख कर गोकुल जाते थे, उनके पदों को सुनकर वे बहुत प्रसन्न होत्ते थे श्रौर उन्दं प्रसाद से सम्मानित करते भर । श्रीगोङ्खलनाथजी रवय टीन्ले पर जाकर इनके पटो को सुना करते ये ! ये ताज्ञ, स्वर, लय और छन्द की दृष्टि से शुद्ध राग के पक्षपात्ती थे। अशास््रीय ढंग से च गाना ही ये उचित ससमते थे, क्योंकि इस प्रकार प्रभु नहीं रीकते, यह उनका विश्वास था । सम्प्रदाय-प्रवेश--- कुछ समय गृह॒स्थाश्रम भोगने के अनन्तर दनके हदय से मगवत्‌ प्राप्ति की इच्छा जागृत हुईं और विरक होकर इन्होने श्रज का आश्रय




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