गागर मैं सागर | Gagar Main Sagar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
78
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)व्राह्मणकुमार बोले-हमें अच्छे खेत की पहचान है। तुमसे हमें कुछ
जानना नहीं है । अच्छे पात्र तो ब्राह्मण ही हो सकते हैं, तम्दारे जैसे नहीं ।
चल, जा-जा, यहाँ तुम्हें कुछ मिलने का नहीं ।
यक्ष बोला--बआहाणकुमारो ! तुम जिन्हें पात्र कह रहे हो, वे सही अर्थ
मे पात्र नहीं हैँ । क्रोध, हसा आदि प्रवृत्तियों मे आसक्तं रहने वाले कभी
पात्र नहीं होते ।
व्राह्मणकुमार बोले--ओ भिक्षुक ! ब्राह्मणों को बुरा-मछा कहता है
और भिक्षा भी लेना चाहता है, यह कैसी धृष्टता ! यह सब अन्न भले ही
नष्ट हो जाए, फिर भी तुझे कुछ नहीं मिल सकता ।
यक्ष फिर बोला--जितेन्द्रिय साधु को भिक्षा नहीं दोगे तो तुम्हें यज्ञ
का क्या लाभ होगा ?
इस प्रकार यक्ष की विपक्ष, बातें सुन ब्राह्मणकुमार क्रोध से काँप उठे,
मुनि को मारने के लिए दोड़े | यक्ष ने बीच में ही उन सबको मूच्छित कर
दिया। कुमारो कौ यह दशा देख उपाध्याय दौड़े ओर मुनि के चरणों में
गिर पडे । मुनि को शान्त करने के लिए बोले--अज्ञानी कुमारों ने आपका
अविनग्र किया है, उन्हें क्षमा करें । आप महर्षि हैं-दया के सागर हैं।
यक्ष मुनि के शरीर से दूर हो गया । मुनि अपनी शान्त-मुद्रा में बोले -मेरे
न तो पहले क्रोध था और न अब भी है। यह काम मेरी. सेवा में रहने वाले
यक्ष का है। ब्राह्मण बोले--आप क्रोध नहीं करते, हमें मालम है। हमारे
यहाँ भोजन बना है, उसमें से कुछ भिक्षा ले हमें पवित्र करें। मुनि ने
आहार ले मास-तपस्या का पारणा किया ।
ब्राह्मणों को अहिसात्मक यज्ञ का उपदेश दे, मुनि अपने स्थान को चले
गए ।
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