आध्यात्मिक वैभव | Adhyatmik Vaibhav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऋप्राध्यात्मिक भूमिका
“ट्री प्रेयास जिन अच्तरजामी प्रातमरामी नामी रे
प्रघ्यातम जे वस्तु विचारी, वीजा वधा लवासी रे
वम्नुगने जे वस्तु प्रकाथे श्त्रानन्दघन' मन वासी > ।*
সাব परमात्मा की प्रार्थना की पक्तियोमे से जिन पक्तियो
का विश्लेषण किया जा चुका है, उनको छोड कर यहा भ्रतिम पक्ति का
मुस्य तौर पर उच्चारण किया गया है श्रौर पूरे की आध्यात्मिक भूमिका
के साथ जीवन के लक्ष्य के विषय में किये गये सकेत को आधार मानते
वालो को आत्मा के सम्बन्ध में कुछ कहा जा रहा है ।
ग्रध्यात्मी व्यक्ति कौन है ? विभिन्न तरीको से नाम, स्थापना,
द्रव्य और भाव की दृष्टि से श्राघ्यात्मिक जीवन का विष्लेषण स्पष्ट
फर दिया गया है । भावात्मक स्थिति के साथ चार निश्षेपो को जोडते
हुए इस पक्ति में कहा गया है कि अध्यात्मी वही है, जो वस्तु विचार
को अर्थात् इस विराट् विश्व मे जो अनेक वस्तुये दृष्टिगत हो रही है,
उन प्ननेक पदार्थों को नेयदृष्टि से जान लेवे और उनका ज्ञान होने
के वाद यह चिन्तन करें कि कौन-सी वस्तुये ;्रहग करने योग्य हैं भ्ौर
कौन-सी छोड़ने योग्य । हेय और ग्रहग-वृत्ति शब्र्थात् कुछ छोडने और
प्रहुण करने की भावना तभी पदा होगी जव ट्म वस्तु-स्वस्प के ज्ञान
वो प्राप्त करेंगे । वस्तुर्ये तो बनती है और विगडती है तथा कुछ
समय तक टिक कर विलीन भी हो जाती है । यहा उन वस्तुओं का
मुर्य विचार नही है। यहा तो मुस्य विचार उस वस्तु का है जो कभी
विनीन नहीं होती, सद्या के लिए जिसका अरण्टित रूप है और जिसके
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