आध्यात्मिक एंड नैतिक मूल्य भाग १ | Adhyatmik And Naitik Mulya Bhag -1
श्रेणी : शिक्षा / Education
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
372
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शध्यादिमक एवं नैतिक श्रूल्य 7)
हमारा महाशत् काम है
भले ही पाँच विकार हमारे शत्रु हैं और देह-अभिमान उनका मूल है परन्तु उन सभी
का सरदार यह 'काम-विकार' ही है। इस सेनापति को जीतने से अन्य सभी सैनिक
हथियार डाल देते हैं। नाम इसका काम है परन्तु यह सभी काम बिगाड़ने वाला शत्र ह।
यह किसी काम का नहीं, परन्तु पता नहीं क्यों इसका नाम 'काम' रख दिया गया है। यदि
देह-अभिमान को नर्क की दहलीज कहें तो यह 'काम' ही नर्क का मुख्य द्वार है।
मनुष्य को पावन से पतित करने वाला अथवा आसपान से खाई में गिराने वाला शत्रु
यही है। ईश्वरीय आनन्द और आत्मिक सुख के ख़जाने को लूट कर खाली करने वाला और
भुुष्य का देवषद छीनने वाला महाश॒त्रु यह काम ही है। मनुष्य के स्वास्थ्य और उसकी आयु
को नष्ट करके उसको काल के पंजे में डालने वाला तथा उसकी तकदीर को लकीर लगाने
वाला विकार भी यही है। काम ही मनुष्य को कायर, कमज़ोर, उत्साहहीन और निकम्मा बना
देने वाला है।
अत: वह ललाट पर लिख देने योग्य और याद रखने योग्य बात है कि ईश्वर की
ओर जाने वाला मनुष्य यदि काम' का भोग कर लेता है तो उसकी हड्डी-पसली ऐसी
बुरी तरह टूट जाती है कि फिर उसे जोड़ने में भी बहुत ही समय और मेहनत लगती है,
अर्थात् वह मनुष्य ईश्वरीय पथ प्र काफी समय चलने के अयोग्य हो जाता है। संसार
में जो अनेक प्रकार के विष हैं, उनसे तो मनुष्य की एक बार मृत्यु होती है, परन्तु काम
विकार को भोगने वाला मनुष्य तो बास्म्बार मृत्यु भोगता है। अग्नि से जला हुआ मनुष्य
ते एक बार ही दुःख पाता है, परन्तु यह काम रूपी जो अग्नि है, यह तो बार-बार मनुष्य
को बहुत ही जलाती है। इसलिए भगवान् कहते हैं कि - ह वत्स! इस काम रूपी विष-
प्र को बन्द करो और ज्ञानामृत पीकर भोगी से योगी बनो।'
अमृत ओर विष एक-दूसरे के शट हैं। अमृत में थोड़ा भी विष मिल जाय तो वह
अमृत नहीं रहता। अत: जो मनुष्य यह मानता है कि वह ज्ञानामृत भी पीता रहेगा और
पम-वासना भी पूर्ण करता रहेगा वह बिल्कुल ही भूला है। जैसे तपे हुए तवे पर पानी
ठहर नहीं सकता बल्कि उड़ जाता है, वैसे ही 'काम' से तपे हुए मनुष्य की बुद्धि में भी
शन नह ठहर सकता। जैसे कोई गवार हाथ मे आये अनमोल रलं को गँवा देता है, वैसे
है मानें कामी मनुष्य भी विषयों में पड़कर अपने अनमोल জীবন को नष्ट कर डालता
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