जालौक और भिखारिणी | Jalauk Or Bhikharini
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कि धामिक अथवा अन्य किसी प्रकार के ब्रत के अतिरिक्त यदि कोई भूखा
रहता है तो विना उसे तुप्त किये में भोजन नहीं करता ।
ईशानदेवी-- ( जो राजा के निकट ही एक दूसरी पीठ पर वैठ गयी हं ।)
सो तो जानती हूँ, नाथ । इस भिखारिणी के अ्रनशन का कोई विशिष्ट
कारण हं?
जालोक-- च्व तक पता नहीं लगा । क्षुधा-तृप्ति-विभाग के कायस्थों
ने उसे नाना प्रकार के भोजन देने के प्रस्ताव किये, किन्तु उसने भोजन
करना श्रस्वीकृत कर दिया 1 श्रव श्रामात्यगये दह में उन्हीं की प्रतीक्षा
कर रहा हैं ।
[ प्रतिहारी का प्रवेश | प्रतिहारी गोरदर्ण क्री एक युवती हूँ ।
कम्बल चस्त्र की साड़ी श्रौर कतक पहने ह, और सुचर्ण के श्राभूषण धारण
किये हुँ । उसकी कटि में चमं के कमरपट मं एक घोटा, किन्तु चौडा
खड़ग लटक रहा है । |
प्रतिहारी--(श्रमिवादन कर) जय हो, सर्वाधिकारी महोदय
विजयेश्वर के पथ से लौट आये है और श्रीमान् के दर्शन के इच्छुक हैं।
जालोौक--भेज दो उन्हें, प्रतिहारी ।
[ प्रतिहारी का प्रस्थान । |
ईशानदेवी--श्रतिकाल तो हो ही गया, पर श्रव कदाचित् ्रधिक
विलंव न होया 1 (उठते हुए) में भोजन की व्यवस्था करती हूँ, आरार्य-
तर!
जालोक~--उट्रो, सुन तोल, क्या हु्रा।
ईद्यानदेवी--ऐसा ? (बैठते हुए) अ्रच्छी वात है।
[ मंत्री का प्रवेश । मंत्री की श्रवस्था लगभग ५५ चर्ष की हैँ । वर्ण
गोर हैँ और सिर तथा लंबी मृद्धों के आधे केश इदेत हें। वह ऊपरी अंग
शमः ८ `
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