जालौक और भिखारिणी | Jalauk Or Bhikharini

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Jalauk Or Bhikharini by गोविन्द दास - Govind Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कि धामिक अथवा अन्य किसी प्रकार के ब्रत के अतिरिक्त यदि कोई भूखा रहता है तो विना उसे तुप्त किये में भोजन नहीं करता । ईशानदेवी-- ( जो राजा के निकट ही एक दूसरी पीठ पर वैठ गयी हं ।) सो तो जानती हूँ, नाथ । इस भिखारिणी के अ्रनशन का कोई विशिष्ट कारण हं? जालोक-- च्व तक पता नहीं लगा । क्षुधा-तृप्ति-विभाग के कायस्थों ने उसे नाना प्रकार के भोजन देने के प्रस्ताव किये, किन्तु उसने भोजन करना श्रस्वीकृत कर दिया 1 श्रव श्रामात्यगये दह में उन्हीं की प्रतीक्षा कर रहा हैं । [ प्रतिहारी का प्रवेश | प्रतिहारी गोरदर्ण क्री एक युवती हूँ । कम्बल चस्त्र की साड़ी श्रौर कतक पहने ह, और सुचर्ण के श्राभूषण धारण किये हुँ । उसकी कटि में चमं के कमरपट मं एक घोटा, किन्तु चौडा खड़ग लटक रहा है । | प्रतिहारी--(श्रमिवादन कर) जय हो, सर्वाधिकारी महोदय विजयेश्वर के पथ से लौट आये है और श्रीमान्‌ के दर्शन के इच्छुक हैं। जालोौक--भेज दो उन्हें, प्रतिहारी । [ प्रतिहारी का प्रस्थान । | ईशानदेवी--श्रतिकाल तो हो ही गया, पर श्रव कदाचित्‌ ्रधिक विलंव न होया 1 (उठते हुए) में भोजन की व्यवस्था करती हूँ, आरार्य- तर! जालोक~--उट्रो, सुन तोल, क्या हु्रा। ईद्यानदेवी--ऐसा ? (बैठते हुए) अ्रच्छी वात है। [ मंत्री का प्रवेश । मंत्री की श्रवस्था लगभग ५५ चर्ष की हैँ । वर्ण गोर हैँ और सिर तथा लंबी मृद्धों के आधे केश इदेत हें। वह ऊपरी अंग शमः ८ `




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