कल्याण माला | Kalyan Mala

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Kalyana Mala by गोविन्ददास - Govinddas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मिलना बनाये रखने दा प्रयत्त वीजिए । दानियाल शाह के दरबार मे बीच- थीच में बाते रहिए । वे बादशाह के वाल्लल्य-भाजन हैं |? इसके वाद सेठजी ने मु शी को बुलाकर राजा पीथल और दानियाल लाः क ठीवान दीनदयाल के नाम एक-एक पत्र लिखकर लाने की आना दी। दोनों पत्रों मे यही लिखवाया कि पत्रवाहक एक प्राचीन और प्रख्यात হাজরা ঈ पुरुष हें, इनकी उन्नति मे मुझे दिलचस्पी है, इसलिए, यदि श्राप 7नकी सहायता करेंगे तो में बहुत आमारी हूँगा । राजा पीथल के लिए एऊ अलग पत्र भी लिखबाया, जिसमें यह प्राथंना की गई कि इस युवक पो अपनी উনা ঈ कोई अच्छा स्थान ढेने की कृपा करें | जब्च तक मु शी पत्र लिग्स्र लाया तय तक वे दोनों बातचीत करते रहे । इस बातचीत से दलपतिगिंह को कल्पाणमल के जान, राय्पकार्य से परिचय ओर बादशाह तथा श्रन्य प्रसुलनो कै बीच रंष्या-बोग्य स्थान की कल्पना हो गई | मन- टी मन डसने कहा कि भोजसिह महाराज ने मुझे यो ही इनके पास नहीं বউ লিলা | বীতী देर में मुशी पत्र ले आया । उसमे हस्ताक्षर करके देते ए सेठजी ने कहा “अ्रच् ढेसी हो रही है । इस नगर मे आपका कोई परिद्धित अथवा मित्र तो नहीं है | मेरे घर को श्राप अपना समझ लीजिए । पतं श्राने-घाने में श्रापको कोई रोर-ठोक न होगी | ? . दलपतिरमिंह डबित शब्दों में अपनी कृतजता व्यक्त करके वहाँ से रवाना तत गया। प 2 ब्गएर्ल को सिफारिश का मूल्य दलपतिसिह को दूसरे ही दिन मालूम हो गया | उन्हे वे दी-नरेश की अ्रज्वशाला से घोड़े और सेना হু ले लेने कौ श्रतुमति प्राप्त थी | अतएव एक अश्व और रामगट ने गाव সত को लेकर वे राजा पीथल से मिलने के लिए रवाना हुए । 1৮০ লাহলাত সবল स्नेहपवंझ 'पीथल” नाम से संबोधित करते थे १६




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