भारत के प्राचीन जैन तीर्थ | Bharat Ke Pracheen Jain Teerth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
99
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महावीर की विहार-चथा
थी । दाना के बीव भे सुतणकला ओर रूप्पकला नासक नदियों बहती थी।
महावीर ने उक्षिग वाचाला से उत्तर वाचाला की आर प्रस्थान किया । उत्तर
वाचाला ताते हुए बीच में कनकखल नाम का आश्रम पडता था | यहाँ से
महावीर লনানস্বা नगरी पहुंच, जहों प्रदर्शी रजा ने उनका आदर-सत्कार
কা | तत्यश्चात् गगा नदी पार कर महावीर सुर्भभपुर पहुंच ओर वह, से
थूगाक सनिवश पहुँच कर ध्यान में अवस्थित है| गए। गरहा म महावा रान-
यूट गए और उसक बाद नालन्दा के बाहर किसी ज॒नादे की शाला म व्याना-
बस्थित हो। गए | सयोगयश म्बलिपुत्र गाशाल भी उस समय यदा टहरा हुआ
বা | महाबीर के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर चद् उनका शिप्य बन गया |
यन स वन कर दानो कल्लाग सनिवेश पहुँच। महावीर ने হা दूसस
बातुसास बताया
तीसरा बष
तत्यश्चात महावीर आर गाशाल सुबन्नखलय पहच | बहा से बाह्ण-
ग्राम गय | वय नन्द श्र उपनन्द्र नामक दा माह गलतत ओर दाना ऊ
द्रनग श्रनग मा-ज्न थ | युम्-शिष्य यलो म से चलकर चपा पहच। भगवान ने
यगा तीसगं चानुमास व्यतीत क्रिया |
चौथा वधं
नस्पश्वात दानो कालाय सानिवश -नाकर एक হাসল में ठहर } वल्य
से पत्तकालय गये, ओर वहाँ स कुमाराय सनिवेश नाकरर चपरमगिज नामक
उद्यान में न्यानावस्थित हो गये। यहों पार्ब्रापत्य स्थबिर मुनिचन्द्र ठहरे हुए
थ जिनके विपय में ऊपर कहा जा चुका है। यहा से चलकर दाना चोराग
सनिवेश पहुँच, लकिन यहां गुमचर समझकर दोनो पक लिय गये | यहा स
दाना न प्रछचया के लिए प्रस्थान किय्रा | महाबार ने यहा चोथा चोमासा
बिताया |
বান্না वधं
पारसा क वराद महावीर श्रीर गाशाल यहाँ से कसगला के लिए रवाना
हूर | वहाँ से श्रावस्ति पहुँच, फिर हलेद्रय गये | फिर दाना नज्नलाग्रास पहेंच
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