भारत के प्राचीन जैन तीर्थ | Bharat Ke Pracheen Jain Teerth

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Bharat Ke Pracheen Jain Teerth by जगदीशचंद्र जैन - Jagdeeshchandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महावीर की विहार-चथा थी । दाना के बीव भे सुतणकला ओर रूप्पकला नासक नदियों बहती थी। महावीर ने उक्षिग वाचाला से उत्तर वाचाला की आर प्रस्थान किया । उत्तर वाचाला ताते हुए बीच में कनकखल नाम का आश्रम पडता था | यहाँ से महावीर লনানস্বা नगरी पहुंच, जहों प्रदर्शी रजा ने उनका आदर-सत्कार কা | तत्यश्चात्‌ गगा नदी पार कर महावीर सुर्भभपुर पहुंच ओर वह, से थूगाक सनिवश पहुँच कर ध्यान में अवस्थित है| गए। गरहा म महावा रान- यूट गए और उसक बाद नालन्दा के बाहर किसी ज॒नादे की शाला म व्याना- बस्थित हो। गए | सयोगयश म्बलिपुत्र गाशाल भी उस समय यदा टहरा हुआ বা | महाबीर के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर चद् उनका शिप्य बन गया | यन स वन कर दानो कल्लाग सनिवेश पहुँच। महावीर ने হা दूसस बातुसास बताया तीसरा बष तत्यश्चात महावीर आर गाशाल सुबन्नखलय पहच | बहा से बाह्ण- ग्राम गय | वय नन्द श्र उपनन्द्र नामक दा माह गलतत ओर दाना ऊ द्रनग श्रनग मा-ज्न थ | युम्-शिष्य यलो म से चलकर चपा पहच। भगवान ने यगा तीसगं चानुमास व्यतीत क्रिया | चौथा वधं नस्पश्वात दानो कालाय सानिवश -नाकर एक হাসল में ठहर } वल्य से पत्तकालय गये, ओर वहाँ स कुमाराय सनिवेश नाकरर चपरमगिज नामक उद्यान में न्यानावस्थित हो गये। यहों पार्ब्रापत्य स्थबिर मुनिचन्द्र ठहरे हुए थ जिनके विपय में ऊपर कहा जा चुका है। यहा से चलकर दाना चोराग सनिवेश पहुँच, लकिन यहां गुमचर समझकर दोनो पक लिय गये | यहा स दाना न प्रछचया के लिए प्रस्थान किय्रा | महाबार ने यहा चोथा चोमासा बिताया | বান্না वधं पारसा क वराद महावीर श्रीर गाशाल यहाँ से कसगला के लिए रवाना हूर | वहाँ से श्रावस्ति पहुँच, फिर हलेद्रय गये | फिर दाना नज्नलाग्रास पहेंच ( ६ )




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