राजा बदल | Rajaa Badal

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Rajaa Badal by विमल मिश्र - Vimal Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रानइदल [१५ बोले जा रहा है और उसकी व्याख्या कर रहा है। उसके अगि दकानि के मालिक मयुर साह भक्तिभाव मे गदंगद हुए बढे हैं एव जते न दुकान दे आदपी से पूछा, 'गौरचद, यह আন ই ই? यौरचद ने तराजू पर सौल तौल्ने तौरत कहा बाई पडत है-- लाम वया है ? रूगता है बलरामपुर में नया आया है । उधर गौर पडितजो धशाधड़ पस्ट्ुत श्लोक बोलते जा रह से और फिर व्याख्या कर रहे ये निर्वेश सवभूतेषय म माभेति पाडव 1 अर्थात मनुष्य निमित्त मात्र है. ज1 उदिंक लोकिक सपम्त बस ईएवर वो अपण बरके उसके भूत्य की तरह्‌ उसी के कम उसी वी प्रीति के लिए सम्पभ बरते हैं वे 'मतमद्त' हैं। ममसे साहजी, शास्त्रों म॑ कहा है सगवर्जित' रहना पड़ेगा, अर्थात जासमित का त्याग करना पड़ेगा, समझ छीतिए अगर मैं यह पाठुशाल्ा प्रारम्भ करता ह तो मुसे आमकित- থু होवर पाठशाला दनानी पड़ेगी) यदि मैं सात कि इस पाठ्शाण के खुलने पर इसी के पर से जीवने निवा कं तवतो गौर पडितागी को स्नान भोजन वे लिए देर हो रही थी । জনাহন पास ही खड़ा था । उसने बहा, पडितजी बहुत देर हा गयी, अब चलिए पन्तिजी शास्त्त प्याध्या म मप्त थे । अचानव মাপা তান মিতা उठे । बहने लगे, 'तू चुप रह | तू मूख आदमी ठहरा तू यर सब क्या समझेगा |! कहकर पडितजी फिर व्याय्या फरन से तत्लीव हो गए, 'सवभूवेधु অ মামনি पाव अर्थात ! भथुरा माहजी न बहुत से छोग दख हैं, ऐकिन जि-दगी मे एसा कोई और आदमी नही देखा । उनता कारोबार काफी पुराता है। वलराम- पुट वगयदी स्टोस खुलने से फर आज तक बहुन से लेग आए गए। वहुतेर छोगो তত তমা জা ही पहुत से लोगो को उन्होने ठगा 1 लेकिन कौन जाते इस नए आंदमो को उन्हाने किम नजर से देखा ।




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