अमृत सन्तान | Amrit Santan
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
48 MB
कुल पष्ठ :
815
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)৮ अमृत-सन्तानं
नानू कोड़े आये पष्पू हिले
( मेंने तो एकदम कूछ भी नहीं किया, मुझे पाप न हो । )
इसी तरह वे अपने-आपको धोखा दिया करते थे । अपने-आपको
छल कर दरम के लिए, दरतनी के लिए, कितने ही निर्दोष लोगों को वे
बलि चढ़ा डाला करते थे । आज साँवता की आय बीत चली है। सारे बलि
शेष हो बले हैं । दरमू अब भी है । दरतनी अब भी हेँ। पर कंच की कोई
बड़ंती नहीं हुई ।
सरब् साँवता सोच रहा था--सब बेकार हूँ । चारों ओर अंधेर-ही-
अंधेर हैँ । अपना तो खेर, अगला और पिछला जीवन एक हिसाब से सुख
से ही कटा है । कोर चिन्ता नही, कोई अफसोस नीं । शिकार, खेती, दारू
ओर मौज-मञ, बस इसी में अस्सी साल कट गये । कभी किसी के मुह से
' रे! नहीं सुनी । कभी किसी को 'हुजूर कह कर नहीं पुकारा । जिससे
भी बात की, ओड़े सोइ, ,ओड़े सोइ ` ( हे साथी, है संघाती ) ही कहा ।
किसी की औरत पर नीयत नहीं बिगाड़ी, किसी और की औरत की चाह
तक नहीं की ' न कभी किसी की जगह-जमीन छीनी-झपटी । सीधा-सपाटा
रहा जीवन-मर, सखु के पेड की तरह सल्छग । अब तक जिस तरह से
दिन कटे हैं, भले कटे हैं; पर अब इस इतने बड़े विशाल-दृषार देह के
अन्दर कहीं कोई पुरज्ञा बिगड़ गया ह । किसी भी घड़ी वहु अटक जा
सकता हैं ।
जाने दो !--फिर जन्म तो लेना ही है ! मेंड ए का स्वाद हे, माँस
का स्वाद है, दारू का नशा है और सुन्दर-सुहावनी यह वन-घरती है ।
अड़सी के पीले-पीले फूलों से सजे-सेंवरे ये ढालवान है, ये छोटे-छोटे ढाल
पहाड़ हैं । हरे-नीले कमरख की तरह के ऊेयबे-नीचे इन पहाड़ों के ऊपर
ये रंग-बिरंगे हलके-फूलके ढीले-डाले मेष हैं। इन्हीं सब में सपने विचरते
रहे हैं। ना, इतने सुन्दर मानुस-जयम से बहु अलग नहीं हो सकेगा !
सरबू साँवता उठ कर श्ड़ा हो यया | घर जाकर अपना अलबोजा
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