तुलसी दास | Tulsi Das
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22.86 MB
कुल पष्ठ :
650
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हू रै७
रामभक्ति की एक अन्य शावश्यक मूमिका | (५६) स्वरूपासक्ति--1 (५७; यश-
की्तनासक्ति--। (४८) पूजासक्ति--। (५९) रामतीर्थ यात्रा! (९०) जाझण
सेवा-1 (६१) श्रनात्म विषयों से मन का निलित्त रखना--। (६ रे) लोक
निरपेक्ता युक्त अनन्याश्रय बुद्धि (६३) वासनाविहदीन तथा व्यापक प्रम-
(४) सर्वस्व-साव-। (६५) लोक संग्रह दतति--। (६६) स्वदोषानुभूति तथा
भागवत भक्ति--। (६७) तिंतिक्ञा इत्ति--। (१८) तन्मयता--। (६९) शुद्ध
प्रेमासक्ति-। (७०) कर्ममूलक, शानमूलक तथा भक्तिमूलक भक्तिमाग ।
(७१) शिवभक्ति रामभक्ति की एक स्वतंत्र भूमिका । (७२) राम के पारमार्थिक
स्वरूप के साक्षात्कार से भव-नाश । (७३) साच्षात्कार का साधन ध्यान |
(७९४) ध्यान के लिए निर्गण स्वरूप की श्रनुप्युक्तता तथा सशुण की उप-
युक्तता | (७५) ध्यान के लिए. उपयुक्त राम के कतिपय श्रवतारी स्वरूप |
(७६) योग द्वारा मोक्ष और चित्त शुद्धि, किन्ु रामभक्त के लिए. वह श्रना-
चश्यक । (७७) ब्रह्मा रामभक्त | (७८) त्रह्मादि श्रन्य जीवों से श्रमिन्न । (७९)
मुक्ति के तीन प्रमुख मेद-लायुज्य, सामीप्य, तथा सालोक्य--श्ौर मेद भक्ति |
४. 'विनय पत्रिका' : (१) राम का निगुण ब्रह्.त । (९) सगुण ब्रहमत्व । (३)
विषणुत्व । (४) विष्णु का ब्रह्मत्व । (५) राम का मूल प्रकृतित्व । (६) राम
का विभवत्व | (७) श्रवतार के कारण | (८) लक्ष्मण का शेषत्व ।
(९) राम का शेषत्वर । (१०) भरत का विश्व-पोषकत्व | (११) शत्रुन्न का शू-
सूदनत्व । (१२) बानरादि का देवत्व । (१३) सीता का आदि शक्तित्व। (१४)
माया का रामाभ्रयत्व । (१५) सष्टि-विस्तार । (१६) राम का करण-कारणुत्व ।
(१७) जगत् का मिथ्यात्व । (१८) आत्म परिचय श्रौर भवनाश के लिए
विषय-विराग की श्रावश्यकता | (१९) जीव मे यथार्थ ईश्वरत्व । (२०) मन के
कारण भव-वंधन । (९१) स्वरूप-विसुमरण के कारण ही भव बंघन। (२२)
स्वरूप-हान । (२३) रामभक्ति से भवनाश । (२४) झन्य साधनों से उस की
प्राप्ति में कटिनता । (२४) भक्ति साघन की झपेक्षाकत सुगमता । (२६) राम-
भक्ति बिना मुक्ति असंभव । (२७) मुक्ति के लिए रामझुपा झावश्यक | (२८)
राम झपा की सुलभता । (२९) रामभक्ति के बिना विवेक श्रसंभव । (३०)
चरिन्रअवण रामभक्ति की एक भूमिका । (३१) सतसंग रामभक्ति की एक
अन्य भूमिका । (३२) संत-लक्षण। (३३) संत कपा से राम-प्राप्ति | (३४)
शुरुकृपा--रामभक्ति की एक झन्य भूमिका । (३४) नाम जप--अ। (३६)
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