तुलसी दास | Tulsi Das

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1062 Tulsi Das 1942 by Mataprasad Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हू रै७ रामभक्ति की एक अन्य शावश्यक मूमिका | (५६) स्वरूपासक्ति--1 (५७; यश- की्तनासक्ति--। (४८) पूजासक्ति--। (५९) रामतीर्थ यात्रा! (९०) जाझण सेवा-1 (६१) श्रनात्म विषयों से मन का निलित्त रखना--। (६ रे) लोक निरपेक्ता युक्त अनन्याश्रय बुद्धि (६३) वासनाविहदीन तथा व्यापक प्रम- (४) सर्वस्व-साव-। (६५) लोक संग्रह दतति--। (६६) स्वदोषानुभूति तथा भागवत भक्ति--। (६७) तिंतिक्ञा इत्ति--। (१८) तन्मयता--। (६९) शुद्ध प्रेमासक्ति-। (७०) कर्ममूलक, शानमूलक तथा भक्तिमूलक भक्तिमाग । (७१) शिवभक्ति रामभक्ति की एक स्वतंत्र भूमिका । (७२) राम के पारमार्थिक स्वरूप के साक्षात्कार से भव-नाश । (७३) साच्षात्कार का साधन ध्यान | (७९४) ध्यान के लिए निर्गण स्वरूप की श्रनुप्युक्तता तथा सशुण की उप- युक्तता | (७५) ध्यान के लिए. उपयुक्त राम के कतिपय श्रवतारी स्वरूप | (७६) योग द्वारा मोक्ष और चित्त शुद्धि, किन्ु रामभक्त के लिए. वह श्रना- चश्यक । (७७) ब्रह्मा रामभक्त | (७८) त्रह्मादि श्रन्य जीवों से श्रमिन्न । (७९) मुक्ति के तीन प्रमुख मेद-लायुज्य, सामीप्य, तथा सालोक्य--श्ौर मेद भक्ति | ४. 'विनय पत्रिका' : (१) राम का निगुण ब्रह्.त । (९) सगुण ब्रहमत्व । (३) विषणुत्व । (४) विष्णु का ब्रह्मत्व । (५) राम का मूल प्रकृतित्व । (६) राम का विभवत्व | (७) श्रवतार के कारण | (८) लक्ष्मण का शेषत्व । (९) राम का शेषत्वर । (१०) भरत का विश्व-पोषकत्व | (११) शत्रुन्न का शू- सूदनत्व । (१२) बानरादि का देवत्व । (१३) सीता का आदि शक्तित्व। (१४) माया का रामाभ्रयत्व । (१५) सष्टि-विस्तार । (१६) राम का करण-कारणुत्व । (१७) जगत्‌ का मिथ्यात्व । (१८) आत्म परिचय श्रौर भवनाश के लिए विषय-विराग की श्रावश्यकता | (१९) जीव मे यथार्थ ईश्वरत्व । (२०) मन के कारण भव-वंधन । (९१) स्वरूप-विसुमरण के कारण ही भव बंघन। (२२) स्वरूप-हान । (२३) रामभक्ति से भवनाश । (२४) झन्य साधनों से उस की प्राप्ति में कटिनता । (२४) भक्ति साघन की झपेक्षाकत सुगमता । (२६) राम- भक्ति बिना मुक्ति असंभव । (२७) मुक्ति के लिए रामझुपा झावश्यक | (२८) राम झपा की सुलभता । (२९) रामभक्ति के बिना विवेक श्रसंभव । (३०) चरिन्रअवण रामभक्ति की एक भूमिका । (३१) सतसंग रामभक्ति की एक अन्य भूमिका । (३२) संत-लक्षण। (३३) संत कपा से राम-प्राप्ति | (३४) शुरुकृपा--रामभक्ति की एक झन्य भूमिका । (३४) नाम जप--अ। (३६)




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