तीन नाटक | Teen Natak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हू हद कार्य की अवतारणा सभ्यगण को जेसी हृदयग्राहिणी होती थी वर्तमान काल में नहीं होती । अब नाटकादि दुद्य-काव्य में अस्वाभाविक सामग्री परिपोषक काव्य सहृदय सभ्य सण्डली को नितान्त अरुचिकर है। इसलिए स्वाभाविकी रचना ही इस काल के सभ्यगण की हृदयग्राहिणी हैं। इसमें अब अलौकिक विषय का आश्रय करके नाटकादि दुदय-काव्य प्रणयन करना उचित नहीं है। अब नाटक में कहीं आदी प्रभूति नाट्या- लंकार कहीं प्रकरी कहीं विलोचन कहीं संफेट कहीं पंच संधि आदि ऐसे ही अन्य विषयों की कोई आवश्यकता नहीं रही । संस्कृत नाटक की भाँति हिन्दी नाटक में इनका अनुसन्धान करना या किसी नाटकांग में इनको यत्नपुर्दंक भरकर हिन्दी नाटक लिखना व्यर्थ है। में भारतेन्दुजी से बहुत दूर तक सहमत हूँ फिर भी में इतना अवद्य मानता हूँ कि प्राचीन पद्धति के मनन से आधुनिक काल में भी श्रेष्ठ ताटक के प्रणयन में बहुत सहायता मिलती है। | नाट्य-कला पर पद्चिम का सर्वे प्रथम ग्रन्थ यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू का लिखा मिछता हैं । इस ग्रन्थ का नाम पोइटिक्स ०८7८5 है। भरत मुनि के काल के संबंध में हम केवल अन्दाज़ लगाते हूँ और विद्वानों का कथन है कि नाट्य-शास्त्र पर भरत मुनि का ग्रन्थ संसार का सबसे पुराना ग्रन्थ है। परन्तु विद्वानों ने अरस्तू का काल निश्चित किया हैँ। उनका जन्म ईसा के ३८४ वषे पूर्व हुआ और मृत्यु ईसा के ३२२ वर्ष पुर्वें। विद्वानों का मत है कि अरस्तू ने इस ग्रन्थ को ईसा के ३३० वर्ष पहले लिखा था 1 ध्यान देनें योग्य बात यह है कि जिस प्रकार भरत मुनि ने वस्तु नेता और रस को प्रधानता दी. है उसी प्रकार अरस्तू ने भी प्लॉट वस्तु हीरों नेता और इमोदन रस इन्हीं तीन बातों को प्रधान .माना हैं । अरस्तू ने नाटकों को दो विभागों में बाँटा है--ट्रेजिडी और कॉमेडी 1 आजकल ट्रेजिडी का अथथे दुःखान्त और कॉमेडी का अय्थ सुखान्त किया जाता है। किन्तु प्राचीन यूनान में इनका इलना ही अथ न.




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