ग्राम संस्था | Gram Sanstha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Gram Sanstha by शंकर राव जोशी - Shankar Rav Joshi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शंकर राव जोशी - Shankar Rav Joshi

Add Infomation AboutShankar Rav Joshi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
'অহ্থিন্তা परिच्छेद । ११ इस श्लोकका मतलब यह है कि जितने ज़्यादा चूल्दे गे उतनी द अधिक वैश्य देवादि क्रियाएं होंगी और पृष्प बढ़ेगा अतः भाइयों को जुदा ही रना चाहिए । मनुविदित स्मृति ओर उसके टीकाकारों के निबंध ग्रथ पूर्ण से दीखते हैं किन्तु उनमें बहुत से कायदें। का समावेश नहीं किया गया है ओर न उन कायदों का लोगों पर कुछ अमल ही है । प्राच्य देशोंके लोग विशेषतः स्थानिक रूढ़ियों काही अनुकरण करते आए दै । किन्तु अब अंगरेजी शिक्षा के कारण धीरे धीरे अंगर्ज! कायदों का ज़ोर बढ़ता जा रहा है | अंगरेजी पढ़ेलिखे ओर पश्चिमी सभ्यता के पर्के उपासका 'पर ही अंगरेजी कायदों का अधिक प्रभाव पड़ा है । अंगरेजी :ढंगकी अदालतों के स्थापित हो जाने से स्मृतियां का प्रमाव कम हो गया है। तथापि अबभी स्मृतियों का प्रमाव भारतीय इदर्यो पर नजर अता है । पश्चा शिक्षाक प्रभाव के कारण भारतीय जनता पाश्चात्य विचारों को ग्रहण करती जा रही ই | हम दावेके साथ कह सकते हैं कि अंगरेजो के साहचर्यं से भारत वासिर्याकी मान- सिक उन्नति होने के बदल अवनति होती जा रही दै । का जाता है कि मनुस्सृति में सब हिन्दू धर्म विधिका संग्रह किया गया है किन्तु व्यवद्वार में स्मृति-निबंध-अंथों का ही आसरा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now