परम्परा | Parampara

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Parampara by अज्ञेय - Agyey

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' - Sachchidananda Vatsyayan 'Agyey'

Add Infomation AboutSachchidananda VatsyayanAgyey'

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अदिखित कहानी [ १४ | परम्परा ০৯ পি বর বা, কা. এ এ ৯ ডা পা পাস শপ পপ কপ পার तजक ५७५०० ननित भन त পিক पैस आज हुई। एक प्रेम-कहानी लिखता उठा थाः प्रेम की भावुकता से छल+ती हुई, और उसके कुछ बाकय मेरे कानो से अभी गज रहे थे में एकाएक उठकर रसोई में गया, देखा, गृहल॒&्ष्मी अनारदाना पीस रही हैं। इससे में तनिक हतप्रभ नहीं हुआ, उसे सम्बोधन करके थे वाक्य दुहराने लगा. उसने विस्मय से मेरी ओर देखा, फिर আনান बोधी, यह सब काम करना पडता तो पता छगवा-- यदि में इतने से ही घबरा जाता, ता क्‍या खाक प्रेमिक होता ? मे और ফা জন ভা इसे गुस्सा आ गया | बोली; तुम्हे शर्म भी नहीं आती । में काम करती मरी जती ह, घर से एक पैसा नही है, ओर तुम बहके चले जा रहे हो जेसे में कोई थियेटर की--? मुझे ऐसा छगा, किसी ने थप्पड मार दिया हो । मेरा सब भाह्वाद मिट्टी हो गया, मुझे जो भयकर क्रोध आया उसे में कह भी नहीं सका, घुपचाप अपने पढ़ने के कमरे मे आ गया और सोचते छगा. . मुझे सूझा, घर को--इस प्रश्ना आर कदन के पुन्न को जो घरक नाम से सम्बोधित दहै--छोड़कर चरा जा । पर, यदि तने साधन होते फ घर छोड़कर जा सकूँ, तो घर ही में न सुख से रहूं सकता ! यही सोचते- सोचते मेरा क्रोध गृहलक्ष्मी पर से हटकर अपने ऊपर आया | बहॉाँ से हटकर अपने काम पर ओर फिर संसार पर जाकर कही धीरे-धीरे खो गया, से केव कुदृता रह गया' ऐसे ही, ऊँघने छगा। डेघते-फ्ंघते मुझे याद आया, तुलसीदास भी अपनी श्री के मुख से ऐसी एक बात सुनकर विरक्त हो गये थे भौर वुरुसी- दास बन गये थे | और एक में हूँ मुझे सूझा। इस विभेद को कानी मे ब्रॉधकर रखें , अपने जीवन की सारी विवशताएँ उसमें रख दूँ नींद आने लगी । मैने मेज पर पड़ी हुई किताबो' को एक ओर घकेछकर सिर रखने की जगह' तिकाली, और वहीं मेज पर सिर टेककर सो गया .. ৮ ৮ ১৫ नीद खुली, तो उस देर में से एक किताब खीची और विमसनस्क-सा होकर उसके पन्‍ने उलछटसे छगा । एकाएक मेरी दृष्टि कहीं अटकी और में पढ़ने । छम्‌ #॥ १ ` तुलसीदास के जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण घटलां थी बहू, जब थे अपनी पत्मी के घर गये ओर उसकी फटकार सुनकर एकाएक बिस्त दयो गये । इसी भटना ने उनके जीवन को बना दिया, चन्द भमर कर दिया, नकी तो म, उत




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now