हिन्दुतानी त्रैमासिक भाग 26 अंक 14 | Hindustani Traimasik Bhaag 26 Ank 14

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Hindustani Traimasik Bhaag 26 Ank 14 by श्री बालकृष्ण राव - Balkrishna Rao

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रक १ ४ पातहाद को उप यस्त करने का समस्याएं हा उपन्यात्त में सभी प्रासगिक कथाए मिल्नकर एक ऐसा परिणाम उत्पन्न करती है जिसको श्रः समचा उपन्यास प्रवृत्त होता है तथा पाठक के सम्मुख स्वयं प्रकट होती हुई एक प्रक्रिया, एक नियोजित कथासूत्र के रूप में आता है । शिथिल ऐतिहासिक उपन्यास में प्रासंगिक कथा एँ परस्पर असम्बद्ध रहती हैं और इसी' ग्रर्थ में केवल एक इकाई होती हैं कि वे सभी एक ही व्यक्ति-- तायक-ससे सम्बन्धित होती हैं तथा समूचा उपन्यास कथासूच की अपेक्षा वायक के इदंगिद अपने रूप का निर्माण करता है, किन्तु उपक्ृथात्मक ऐतिहासिक उपन्यास में ऐसा कोई एकीभूल कथासूत्र नहीं होता जो कथा का केन्द्र-बिन्दु हो, श्र न कोई নিহিত चरित्र होता है, বালে पम्पां उपन्यास उपाध्यानों अथवा उपकथाओं में विभाजित होता है श्रीर्‌ उसका प्रत्येक श्रध्याय्र एक प्रकार से नवस्फूतिमय' होता है तथा उसका स्नोत एक स्वतंत्र ऐतिहासिक तथ्य होता है । इतिहास, पुरे उपन्यात्त के लिए विवरण वा दृत्तान्तों का उतना दीघ॑ क्रम नहीं प्रस्तुत करता जितना अनकही प्रासंगिक कहानियाँ, जो कल्पना द्वारा परस्पर निबद्ध की जा सकती हैं, फिर भी जो अपने मुलभुत ऐतिहासिक परिवेश्व में स्वतंत्र रहती हैं। निरदिचत और घटित घटना के पुनर्गठन में अपनी मामिकताः के बावजूद भा ऐतिहासिक विवबरणों की सीधे इतिहासः से लिये जाने की सम्पूर्ण पद्धति स्वयं इतिहास के अंग्वात्पक प्रकृति अथवा कमर से कम कथाशिरा उत्पन्न करने वाले मानवीय व्यापारों से समन्वित इतिहास की अ्रंशात्मक प्रकृति से सीमित होती है ॥% श्राम्त तौर पर ऐसा इतिहास मात्र उपाख्यानों या प्रासंगिक कथाओ्रों तक अपना विस्तार बढ़ा सकता है, और तब एक ऐसी कृति के निर्माण का खतरा पैदा हो जाता है जो उपन्यास नहीं होता वरन्‌ ऐतिहासिक रेखा-चित्रों का संकलन श्रयवा अतीत की पृष्ठभूमि में काल्पनिक आमभोद-अ्रमण का प्रसमूह बन जाता है। यहाँ ऐतिहासिक उपन्यास में निष्ठाश्रों का संघर्ष लक्षित किया जा सकता है। ऐतिहासिक उपन्यास की सरचता ते तो अकेले इतिहास द्वारा की जा सकती है, भौर न चुने हुए इतिहास-छण्डों द्वारा । उपकथाओं या उपास्यानों का कोई समूह अप्तम्बद्ध बिवरण होता है तथा एक कुशल लेखक की कल्पना और निर्माण-कौशल' से प्रवाहश्ील कथा में एकीकृत किया जा सकता है; श्रथवा वह असम्बद्ध विवरण में भी रह सकता है तथा इसके नावजुद भौ उपन्य.स गं एक ऐसे भिन्न प्रकार का एक प्राप्त कर सकता है जो किसी बरशंत से भ्रधिक कुछ और हो । किन्तु दोना अवस्थाश्रों में यह श्रावश्यक है कि कल्पना इतिहास की सहायता करे । ज्ञात घटनाओं एवं तथ्यों के पीछे मानवीय भावनाओं की परिकल्पना इतिहास जो प्रकृत घटनाएँ एवं तथ्य हमें देता है, उनमें न तो कार्य-कारगा-सम्बन्धों का कोई प्रत्यक्ष मूं्च दृष्टिगत हाता है और ने उनके पीछे किसी ऐसी मानवीय भावना या भावनाओं का समूह दिखाई देता है जो मृतक पटनाझ्रों एवं तथ्यों में प्राण-प्रतिष्ठा' कर उन्हें गीवन्त बचा सके । यद्यपि इतिहासकार प्रकृत घटनाओं और तथ्यों की विवेचता करः तथा सम्बन्ध-सूत्र स्थापित कर उनके कार्य-कारण सम्बन्धों की परिकल्पना करता है, किन्तु अपने स प्रथत के बावजूद भी वह एक स्पष्ट, सजीव एवं मनोरम चित्र देने में सफल नहीं हो पाता | का रण कि उसकी अपनी सरीमाएँ होती ठँ जिनके अन्तर्गत रहकर ही उसे अपने कार्य




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