उत्तर प्रदेश में कृषि विपणन की स्थिति और सम्भावनाएं | Uttar Pradesh Me Krishi Vipdan Ki Sthiti Aur Sambhawnayen
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
353
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)फसल के लिए बीज के रूप मे प्रयोग नहीं करते है। वहीं सई जेनेरिस के अन्तर्गत किसान बीजो का केवल
व्यापारिक लेन देन नहीं कर सकते। इसके अन्तर्गत उपज के एक भाग को बीज के रूप मे प्रयोग करने पर कोई
प्रतिबन्ध नहीं है। भारत ने भूर्ड जेनेस्शि को ही विकल्प के रूप में चुना है। तथा किसान अपनी फसल के
बीज रख सकते है। एवं इच्छानुसार उसका उपयोग कर सकते है। तब ही देश में उत्पन किए जा रहे अच्छे
किस्म के बीज पूर्वं की भति हयेशा उपलब्ध रहेगे।
इस प्रकार बौद्धिक सम्पदा अधिकार को हमारे कृषि वैज्ञानिकों व सरकार ने अगर चुनौती के
रूप में स्वीकार किया तो भविष्य में हमारा राष्ट्र भी इतना आविष्कार कर लेगा कि विकसित राष्ट्रों की भाँति
अधिक से अधिक लाभ अर्जित करने में समर्थ हो सकते है । सूई जेनेरिस के अन्तर्गत व्यवस्थाएँ थोडी अधिक
कर्ठोर होगी तथा वीजो के उपयोग के मामले मे किसानों की स्वतत्रता का हनन होगा । अत॒ आवश्यकता इस
वात की है कि समय रहते इसमे एसे परिवर्तन सशोधन का प्रस्ताव किया जाए जिससे भारतीय कृषि के
दीर्घकालिक विकास का मार्ग प्रशस्त हो सके।
कनि नियति के बद्धते चण - भरत मे कृषि से सम्बधित् वस्तुओ के राष्ट्रीय स्तर पर लेन-देन
का इतिहिस बृहत पुराना है। जैसे सूत, कपास, चाध, शक्कर्, जट, मसाले इत्यादि अनेक वस्व पुगरल काल
एव ब्रिटिश काल मे भरी दूसरे देशों को भेजी जाती थी। लेकिन उस समय कृषि से सम्बन्धित लेने-देन की
सरचना भिन थी। स्वतन्रता प्राप्ति से पूर्व अग्रेज शासक कृषि से सम्बंधित उत्पादों के विदेशी व्यापार को
अपने कब्जे मे कर रखे थे तब भारतीय किसानो को कोई विशेष लाभ नहीं मिल पाता धा! आजादी प्रापि के
बाद शुरू मे तो कमोबेश यही सिति कनी रही मौर मयति से की अधिके आयात होता रहा। हमारे देश के
कुल नियत में कृषि वस्तुओ का बडा हिस्सा रहता है। दुनिया भर में आज शायद ही कोई ऐसा देश हो जो
आयात अथवा नियत न करता हो। सभी को अपनी-अपनी आवश्यकताओं के अनृरूप अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के
, व्यापार मे भागीदारी करनी णडती है। उत्पादक व्यापारी तथा उपभोक्ता को क्रमश बाजार लाभ और
उपलब्धता सुनिश्चित कराने में विश्व व्यापार का स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण रहता है। चूँकि हमारा भारत देश
कृषि प्रधान है और कृषि उत्पादन के क्षेत में हमारा देश भरण पोषण की स्थिति से ऊपर उठकर कृषि उत्पादों
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