जैन भजन शतक | Jain Bhajan Shatak
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)= १५)
वनाय गुल कलियां, बनाय गुल कलियाँ, मनावोरी अरि० ॥१1
গানা নজানবা हाव भाव दिखारोी। |
जय जय जिनेन्द्र, छुनावों रल ।मेलियां,
सुनयो रर मिडिया, सुनाबो रट मिलिया, मनापो |
|| छम छम छम् छम, नाच नचावो ।
ताह बजवा, बजि मने मार्या ।
|| जावो मनमया बजावो मनमया मनाय अ।र०॥ ३॥
सुक्ति.विदानन्द् नाटक स्वर । .
कर्मा कौ .धूट,. उडी गकि गलियां । |
उडाभो गंह्गिलि्या,उ डाओ गल्या, पनवोरी भर०४।
अगत प्रभावनाः, [द्या जन बाणा । । `
| पीषो पिलावो, दिखाय छल बलियाँ । এ.
॥ दिखाय छल वलियां, दिखाय॑ छछ वलियां मनावोरी अरि० ॥५॥
२३ | '
। तज़े ॥ सोरठ भधिक स्घरूप रूपका द्विया १ जागा मोल्ञ ॥
| उरे दिषा का है फल मारी तेरे से संश नजागा मार ॥ देक॥
॥ चोरी झूठ कुशील परिय्रह हिंसा अग विचार ।
॥ इनसे दुगेति होवे नकं मे पडे अती बार ॥ १॥
|| सरे जीव जान अपनी सम ओर. करणा मन धार।
|| जकरी हषा तू केर बह तो अप्नी मप निहार ॥२॥, .
||ह हिसा से निषैन निवे नित दुल स अपार. .. .
| नयाम तने दिंसक भाव भावते करल पर अकार ॥१॥ _ _
User Reviews
No Reviews | Add Yours...