सामायिक - सूत्र | Samayik-sutra
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
340
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| उिव्वक्याहैर विद्व क्या है ?
प्रिय सज्जनो | यह जो कुछ भी विश्व-प्रपंच प्रत्यक्ष अथवा
परोक्ष रूप में झरपके सामने है, यह क्या है? कभी एकान्त में
बैठकर इस सम्बन्ध में कुछ सोचा-विचारा भी है या नहीं ? उत्तर
स्पष्ट है--नहीं! । आज का मनुष्य कितना भूला हुआ प्राणी है कि
वह जिस संसार में रहता-सहता है, अनादिकाल से जहाँ जन्म-मरण
की अनन्त कड़ियों का जोड़-तोड़ लगाता आया है, उसी के सम्बन्ध
में नहीं जानता कि वह वस्तुत: क्या है ?
आज के भोग-विलासी मनुष्यों का इस प्रश्न को ओर, भले ही
लक्ष्य न गया हो, परन्तु हमारे प्राचीन तत्त्वज्ञानी महापुरुषों ने इस
सम्बन्ध में बड़ी ही महत्त्वपूर्ण गवेषणाएं की हैं। भारत के बड़े-बड़े
दाशेनिकों ने संसार की इस रहस्ययूरों गुत्थी को सुलभाने के श्रति
स्तुत्य प्रथत्त किए हैं और वे अपने प्रथत्नों में बहुत-कुछ सफल भी
हुए हैं।
जेन दृष्टि
৪
परन्तु, भ्राज तक की जितनी भी संसार के सम्बन्ध में दाशनिक
विचारधाराएं उपलब्ध हुई हैं, उनमें यदि कोई सबसे अ्रधिक स्पष्ट
सुसंगत एवं तकंपूर्ण स्पष्ट विचारधारा है, तो वह केवल ज्ञान एवं
केवल दर्शन के धर्ता, सर्वेज्ञ, स्वदर्शी जेन तीर्थड्धूरों की है। भगवान्
ऋषभदेव आदि सभी तीर्थंद्भूरों का कहना है कि “यह विश्व चैतन्य
ग्रौर् जड़ रूप से उमयात्मक है, श्रनादि है, अनन्त है। न कभी बना
है और न कभी नष्ट होगा। पर्याय की दृष्टि से आकार-प्रकार का,
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