सत्यमार्ग | Satyamarg
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
488
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १३ ]
कनको पूरा.करने की आकुलवा में दुःखी-व चिन्तावान हे यदि
उसको एक दो इच्छाएं कुछ,काल. के लिए पुर्ण द्वो जाती द तव
उसकी इच्छाओं के दुश्ल में कुछ कमी हुई है। इसी फो वह सुल
। मान लेता दै-वास्तव मे इच्छा हो दुल है। सा इच्छा नहीं.
। चिन्ता नदी, षां डः का.नाम भी नहीं ' दतां हि । सच लोग
जानते हैँ. चिन्ता चिता समान जलाती रहती है । चिन्तवान
का शरीर सूज जाता है, मन कुमला जाता है, आत्मा निवेल
हो जादा है | इच्छा या चिन्ता रोग है! जिस की पोड़ा से
घदरा कर यह संसारी धारी इच्छु के मेदने का उपाय करता
है। यदि उपोय सफल हुआ तो उस इच्छा के मिठने से यह
अपने को सुखी मान जेवा है । परन्तु यह इच्छा का मिटना
थोड़े ही काल फे लिए होता दहै। तुतं ष्टी उसी जाति.कीषव
उन्नत से भिन्न और इच्छा पैदा दो जांती है। जिस उपाय से
यह इच्छा रूपी रोग की शान्ति चाहता है बह. उपाय
और अधिक इच्छा रूपी रोग, को बढ़ा देवा है। क्योंकि यह
उपाय इच्छाओं और चिन्ताओं के रोग सेटने का उपाय सच्चा
उपाय नहीं है। * - - -
` - हमको नित्य भूख प्यास की शषः ठतो है। वद मिर जाती
है तव थोडी देर पीछे फिर घटी च्छा पैदा हो जातो है, थद
तो खाघ्रारण यात है। हम मडष्या के दिल म पांच इन्द्रियो के
माँग की निरन्तर बड़ी २ प्रवल च्छाय र्ती है-श्नौर इसी
मलय से उन पद्र्था' फा सम्बन्ध मिलाना चाहते हैं जिन: से
यहं इच्छाष्ट पूर्ण है। । इसी लिए,घधर कमाना चाहते हैं।. धन
के लिए नाना साधनो को करना 'चाहते हैं| नाना साधनो' के
लिये तरह तरह के चेतन अचेतन पदार्था का सम्बन्ध, मिलाना
चाहते हैं। इस तरह इच्छाओं चा चिन्ताश्ये' के मेघो से. हम
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