पउमचरीउ | Paumchhariu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पठमचरिंठ “व शब्द पम चरिड' भौर 'शुद्धय चरिड की मिन्नताको साफ बता रहा है। हो सकता है कि 'पचमी चरिड'को तरह 'सुदुय বি स्वयम्मूकी रचना रही हो । डॉ० सायाणी 'सुद्धय चरिड*को रुग कति मानते हे, यह ठीक भी है। पर उनका कहना है कि कविने तीनों ग्रन्थ अधूरे छोढे, जिन्हें बादमें त्रिभुवनने पूरा किया। इसके तीव कारण हैं :--- (१) १० च० और रिं० ने० च० का मिन्न-मिन्न श्राश्रयमें हिला जाना । (२) प० च० के लेखनमें अधिक अन्तराल पढना । (३) २३ और ४३ में सन्धिथोके भारम्भमें कविने नये सिरेसे मगलाचरण किये है ये लम्बे विराम के द्योतक हैं, इससे यही सम्भावना अधिक है कि कविने पहली कृति भधूरी होते हुए भी दूसरी रचना शुरू कर दी होगी।” অন, ভাঁণ मायाणीके अनुसार तीन अन्य अधूरे थे । डॉ० हीराछाछ ঈনক্কা জলিল है कि 'पठमचरिउ! पूरा था पर 'रि० ने० च०! सम्भवतः कविके आक- स्मिक निधनसे अधूरा रह गया, उसे पुत्र त्रिभुवनने पूरा किया। इस तरह डॉ जैनका मत उक्त दो मतोंके बीचका है। इस विवादसे एक वात सर्वेसम्मत है कि कविकी रचनाओोमें कुछ अश भ्रत्तिप्त या परिवर्धित है। बच देखना यह है करि कविकी पूणे रचनां अश वाये गये या भपूण स्वनाभोमे । इस सम्बन्धे प्रेमो जीका मत दीक है 1 इसी तरह ° भायाणोके कतिपय तकं ठोक द, फिर भी समी कृति अधूरी नही मानी जा सकतीं । एक तो द° भायाणीने (उग्वरिथ' शब्दृका सनन्‍्तोष जनक अथे नहीं किया दूसरे 'पउमचरिउ'की २३ ओर ४३ की सन्धियोंके मगछाचरण रूस्वे विरामझे वहीं, अपितु कथाके नये मोडके योतकः है । ये मोद हैं रामका चनवास और रास-रावण युद्धकी भूमिका । यह वात जमती नहीं कि कोई कवि सभी रचनाएँ अधूरी घोड जायगा। यह तथ्य द° भायाणी भी स्वीकार करते हैं कि स्वयम्भूने साम्प्रदायिक या अनावश्यक घटनाओको छोडनेमें सकोच नहीं किया। यह स्पष्ट है




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