श्रीमद्धागवतमहापुराण | shrimadagavatmahapueran
श्रेणी : हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
344
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आअ० ३] दशम रन्ध १५
होने पाये। अब उनका मन सहता पसनतासे मर गया। छगे | विदयाघरियाँ अप्सराझके साथ नाचने छगीं॥ ६॥
जिस समय मंगवानके आवि्भातरका अवसर आया, खर्गमें बड़े-बड़े देवता और ऋषि-मुनि आनन्दसे भरकर पृष्पोंकी
देवताओंकी दुन्दुमियाँ अपने-आप वज उठीं 1५ ॥ वर्षा करने ठगे+ |जछसे भरे हुए बादल समुद्रके पास
किन्नर और गन्धरत्र मधुर खरमें गाने लो तथा सिद्ध जाकर धीरे धीरे गजना कने छो ॥ ७ ॥ जन्म-मुललुके
और चारण भगवानके मड्डडमय गुणोंकी स्तुति करने चक्रसे छुड़ानेवाले जनादनके अवतारका समय ঘা
२. स्वामीके शुभागमनके अवमरपर जैसे सेवक खब्छ वेप-भूषा धारण करते हैं और शन्त हो जते है
इमी प्रकार आक्रारके सब्र नक्षत्र मर) तारे शन््त एवं निर्मल हो गये | वक्रता) अतिचार और युद्ध छोड़कर भौकृष्णका
स्वागत करने लगे |
नक्षत्र
मैं देवकीके गर्भते जन्म छे रहा हूँ तो रोहिणीके सत्तोपके लिये कम-से-कम रोहिणी नक्षत्रमें जन्म तो छेना
ही चाहिये। अथवा चन्द्रवश्धमें जन्म ले रहा हूँ; तो चन्द्रमाकी सबसे प्यारी पत्नी रोहिणीमें ही जन्म छेना उचित
है। यह सोचकर भगवानते रोहिणी नक्षत्रमे जन्म लिया ।
मन
१, योगी मनका निरोध करते हैं) मुमुक्षु निविपय करते द भौर নিতান্ত बाघ करते हैं । तस्वशेने तो मनका सत्यानाश
ही कर दिया | भगवानके अवतारका समय जानकर उसने सोचा कि अब तो मैं अपनी पती--इन्द्रियोँ और विषय
--जालअच्चे सप्के साथ ही मगवानके साथ खेदूँगा। निरोध और याधसे पिण्ड छूटा | श्सीसे मन प्रसन्न हो गया |
२, निर्मलक्ो ही मगवान् मिलने हैं। इसलिये मन निर्मल हे गया ।
३, वैसे शब्द) स्प, रूप) रख, गन्धका परित्याग र देनेपर मगवान् मिते हैं। अब तो खयय भगवान् दी वह
तद बनरर आ रहे हैं। छौकि आनन्द मी प्रथम मिलेगा | यह छोचकर मन प्रष्न हो गया |
४, व्ुदेवके मनम निवास करम ये ही भगवान् प्रकट हो रहे हैं । वह इमारी ही जातिका है; यह सोचकर
मन प्रसन्न हो गया ।
५- सुमन ( देवता और शद्ध मन ) फो शल देनेके लिये ही भगवानका अधतार हो रहा है । यह जानकर
सुमन प्रसन्न हो गये |
६. संतोमें; खऱ्में और उपवनमें सुमन ( शुद्ध मन, देवता और पुष्प ) आनन्दित हो गये । क्यों न हो
माधव ( विष्णु ओर वघन्त ) का आगमन जो हो रहा है|
আন্না.
মর अर्थात् फस्याणफा देनेवाल ६ । कृप्यपक्ष सेय कृष्णति सम्बद्ध दै | अष्टमी तिथि प्के
वीचोवीव सन्वि-ख्छपर पड़ती है | रात्रि योगीननोंको प्रिय है। निशीय यतियाका सन्ध्याकाल ओर হাসি दो
भागोंकी सन्धि है | उस समय भीकृणके आविर्भावफा अर्थ है--अशानके घोर अन्धकारमें दिव्य प्रकाश | निशानाय
च॒न्द्रके वशर्म जन्म लेना है, तो निगाफे मध्यमागमे अवतीर्ण होना उचित भी है। अएमीके चन््रोदयका समय भी वही
है। यदि षषुदेवनौ मेरा जातम नक्ष कर सकते तो हमारे वंशके आदिपुरुष चन्द्रमा समुद्रक्ञान करके अपने
कर ङिरणोि अमृतका वित्तरण करे 1
भै ऋषि; मुनि और देवता जब अपने सुमनकी वर्षा करनेके लिये मधुराकी ओर दौढ़े, तब्र उनका आनन्द
भी पीछे घूढ गया और उनके पीछेपीछे दौडने छगा | उन्होंने अपने निरोध और दाधसम्बन्धी सारे विचार
त्याग कर मनको भ्रीकृष्णकी ओर जानेके लिये मुक्त कर दिया; उनपर न्यौछावर कर दिया |
1২ मेघ समुद्रके पा७ जाकर मन्दनमन््द गर्जना करते हुए कहतें--जछनिषे | यह तुस्दारे उपदेश ( पास
आने ) का फल है कि हमारे पा७ जछ-दी-जछ हो गया | अब ऐसा कुछ उपदेश फरो कि जैसे तुम्हारे मीवर मगवान्
गते ई वैरे मरि भीतर मी रहें ।
२« बादछ सम्रुद्रके पास जाते और कहते कि समुद्र | तुम्हारे दृदयमें मगवान् रइते हैं, हमें भी उनका
दक्ष्म-प्यार प्राप्त कऱा दो। सम उन्हें थोड़ा ज देकर क्ट देता-अपनी <त्ताड तरद्वोंसे दवेर देरशा-जाओं
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