बृहत्तर भारत | Brihatar Bharat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना लेखक--श्री घद्ादुर चन्द्र जी छावड़ा एम. एप, डी. लिटू ( हालेएड ) धवृहत्तर भारत? का इतिहास प्राचीनभारत के चौमुखे बृहत्त्व का द्योतक है| आकारमात्र के बृहत्व का नहीं; अपितु उस सम्रद्ध अवस्था का जिस में पुरुष की विकासात्मक प्रवृत्तियां खच्छुन्द और अव्याहत क्रीडा करती दे, जहां प्रेम और घेये उत्साह और साहस, उदारता ओर सौमनस्य, सामथ्य रौर पराक्रम प्रभृति गुण साधारणजनता के स्वाभाविक भूषण दोते है । इन्दी के कारण धमे का प्रचार, विद्या की उन्नति, राज्य का विस्तार, समाज की प्रतिष्ठा, व्यापार का उत्कषे, नीति की व्यवस्था; संस्कृति का प्रसार इत्यादि नेकं उदात्त कायं संपादित होते हैं । दषे का विपय दै किं हम भारतीयों मे अपने पूर्वजों के चरित्नों को जानने की इच्छा प्रतिदिन बढ़ रही है। उनके वास्तविक इतिहास को खोज निकालने के लिये हज़ारों विद्याप्रेमी तत्पर हैं और इस सत्काये में अप्रमेय सिद्धि प्राप्त हो रही है जिस के फल स्वरूप कई एक परम्परा-प्रचलित कथाए' निमूल और अ्रमात्मक सिद्ध हो रही! हैं और तहिपरीत कई ऐसी तातक्त्विक घटनाओं का परिचय मित्र रह्य है जिज- का कुछ काल पहिले हम में से किसी को भी कुछ पता नहीं था। इस वात का स्पष्टीकरण प्रस्तुत श्वहत्तर भारतः के एक पारायण से खतः हो जायगा । इस में सन्देह नदीं कि वत्तमान मे भारत के पुरातन इतिहास का वैज्ञानिक रीति से जो अनुशीलन हो रहा है उसका सूत्र- पात आ॥्रायः विदेशी--विशेषतः युरोपियन--विद्वानों द्वारा ही हुआ है;




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