महाराष्ट्र - जीवन - प्रभात | Maharashtra - Jivan - Prabhat
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
284
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तीसरा परिच्छेद
सरयुवालः
(लेदर से विदा लेकर रघुनाथ भवानी देवी के
हर खि ५९ मन्दिर की शरोर चले | शिवाजी ने जब इस दुं
९ হু ए को जय किया था तव उसके थोड़े दी दिनौ वाद
पथ उसमे एक देवी की प्रतिमा स्थापित कर दी थी
“और अंम्बंर देश के एक कुलीन ब्राह्मण को वुलाकर देवी-सेवा
के लिए नियुक्त कर दिया था।यही कारण है कि युद्ध के
दिनो मे चिना देवी की पूजा दिये हए शिवाजी कोई काय्यै
श्रारस्भ नहीं करते थे ।
रघुनाथ जवानी की उमंगों से परिपूखं हो, चानन्द फे साथ
अपने कृप्णकेशों को सुधारते हुए आ रहा था और साथ ही युद्ध
का एक भावपरं गीत भी गाताजाता था। ज्यों ही वह मंदिर के
पास पहुँचा कि अचानक उसकी दृष्टि मन्द्रि की निकट्वर्ती छत
पर पड़ गई। सूय्थे सगवाच अस्ताचल पार करः छुके थे परन्तु
पश्चिम दिशा के आकाशमणडल में अंभी आपकी आसा मिल-
मिला रही थी। पक्तीगण अपने वसेरे दढ रहे थे 1 रघुनाथ भी
ছসাজ वहत ही थक गया था इसीलिए वह उस छत की शरोर
देखता इमा पास ऊ एक चतृत्तरे पर वैठ गया ।
जरा और आऑपधेरा हो जनि पर उस उद्यान में पुष्पविनिन्दित
धक चालिका श्राकरं खड़ी हो गैः! रघुनाथ उसकी देख विसितं
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