मुक्तधारा [अभिनव नाटक] | Muktdhara [Abhinav Naatak]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ই 'एक निकट आध्यात्मिक सम्बन्ध है। मुक्तधाराका प्रवाह और जीवन उसके अपने जीवनके स्रोत हैं। फलतः ऐसा प्रयत्न करना वह अपना पवित्र कर्तव्य समझता है कि जिससे सब लोग झरनेके प्रवाहका लाभ उठा सकें । “राजाकी आज्ञासे राजकुमार बन्दी किया जाता है, क्‍यों कि राजाकों विश्वास है कि दण्डित होनेसे राजकुमार खुधर जावेगा । इस बीचमें उत्तरकूठके लोगोंमें बहुत अशान्ति बद्‌ जाती है । कुछ नागरिक चाहते है कि राजकुमारको इस बातका दण्ड मिले कि उसने अपने लोगोंके विरुद्ध शिवतराईके लोगोंका पक्ष 'लिया । दूसरे लोग उसे मुक्त कराना चाहते हैं । अन्ततः आग भष्ठक उठती है जो कि जान बूझ कर लगाई गई थी । इस प्रकार राजकुमार अपनेको बन्दी- 'गृहसे मुक्त कर लेता है और वह अपने निश्चित उद्देश्यको पूरा करनेके लिए निकल पढ़ता है | वह चुपचाप यन्त्रके भीतर घुस जाता है ओर उसके पुजोंको खोल देता है जिससे कि झरनेका पानी अनेक धाराओंमें फूट पढ़ता है और यन्त्र नष्ट हो जाता है । इस वीरतापूर्ण कायेमें राजकुमारकी रृत्यु हो जाती है। वह मृत्युके लिए पूवेसे ही तैयार था। झरनेको स्वच्छन्द देख कर राजकुमारको अपनी स्वतन्त्रता प्राप्त हो जाती है। वह अपनी माता मुक्तधारा झरनेके गभेमें पुनः लोट जाता है।” राजकुमारका दुःखमय अन्त सारे नाटकके रूपकको समझ्ननेकी कुली है । -मनुष्य जातिकी उन्नति तभी संभव है जब कि मनुष्य अपनेको संकुचित स्वार्थोसे ऊपर उठा सके । जब कि वे छोग जो कि मनुष्य जातिके निवाचित नेता हैं, आदशेके आगे संसारके सारे ऐश्वर्योका, यहाँ तक कि अपने जीवनका भी, बलिदान करनेर्मे संकोच न करें । एक ओर सीमासे आगे अन्ततक पहुँचे हुए जातीयताके भाव हैं जो कि दूसरोंको हानि पहुँचा कर अपना क्षणिक राजनीतिक स्वार्थ पूरा करना चाहते हैं ओर दूसरी ओर सारी मनुष्य जातिके प्रति आतृत्वका भाव है। इन दोनों सिद्धान्तोंका इस नाटकमें कई अवसरों पर अच्छी तरह प्रकाश हुआ है । उदाहरणार्थ संकुचित देशभक्तिका प्रतिनिधि एक स्कूलमास्टर अपने विदार्थियों -सहित रंगमश्च पर आता हैं। उसने अपने विधा्थिर्योको राजा रणजित्की अशंसामें एक प्रभावशाली वाक्य याद करा रक्‍्खा है । इस उपायसे स्कूलमास्टर-




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