पालि साहित्य का इतिहास | Paali Sahitya Ka Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
764
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १२ )
अत्यन्त प्रामाणिक विवरण दिया हे । पालि भाषा गौर साहित्य का अत्यन्त सूक्ष्म
और गम्भीर विद्वत्तामय विवेचन जमन विद्वान् ० विल्हेल्म गायगर ने अपने
ग्रन्थ पालि छिटरेचर एण्ड लेंग्वेज” (अंग्रेजी अनुवाद, कलकत्ता, १९४३) में
किया है । इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ में पालि साहित्य का निर्देश तो अपेक्षाकृत संक्षिप्त
रूप में किया गया है (पृष्ठ ९-५८), किन्तु पालि भाषा का शास्त्रीय दृष्टि से
जितना सूक्ष्म ओौर विस्तृत विवेचन (पृष्ठ १-७ तथा ६१-२५०) इस ग्रन्थ में
उपलब्ध होता है उतना अन्यत्र कहीं नहीं। पालि भाषा ओर साहित्य दोनो के
परिपूर्ण और श्यृंखलाबद्ध विवेचन की दृष्टि से डा० विमलाचरण लाहा का दो
जिल्दों में प्रकाशित 'हिस्द्री आऑव पालि लिटरेचर' (लन्दन, १९३३) एक महत्त्व-
पूणं ग्रन्थ हे, यद्यपि इसका भाषा-सम्बन्धी विवेचन डा० गायगर के ग्रन्थ के सामने
नगण्य सा ह । पालि साहित्य-सम्बन्धी इन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों के अलावा उसके
विभिन्न पहलओं पर प्रकाश डालने वाले अनेक प्रबन्ध एवं परिचयात्मक निबन्ध
आदि हैं, जो पालि टैक्सूट् सोसायटी के जर्नेल' में अनुसन्धेय हें। रॉयल एशियाटिक
सोसायटी के 'जनेल' तथा एन्साइक्लोपेडिया ऑव रिलिजन एण्ड एथिक्स में भी
प्रासंगिक तौर पर पाकि साहित्य सम्बन्धी प्रभूत सामग्री मिलती है। पालि टेक्सूट
सोसायटी लन्दन के अंग्रेजी-अनुवादों की भूमिकाओं और अनुक्रमणिकाओं में भी
भारी सामग्री भरी पड़ी है, जिसका उपयोग पालि साहित्य के किसी भी इतिहास-
कार के लिए अत्यन्त महत्त्वपूणं हो सकता हं । सम्पूणं पालि साहित्य में प्राप्त
व्यक्तिवाचक नामो का विवरणात्मके कोश (पालि डिक्शनरी ओं प्रॉपर नेम्स)
जिसे अत्यन्त परिश्रम ओौर विद्त्ता के साथ सिहरी विद्वान् डा० मलुलसेकर ने,
विशेषतः पालि टेक्सृट सोसायटी. क अनुवादो की अनुक्रमणियों के आधार पर,
ग्रथित किया ह, पालि साहित्य के विद्याथियो के लिए सदा एक प्रेरणा की वस्तु
रहेगी । पालि साहित्य के विभिन्न पहलृमो पर विवेचन हमे कने के भेनुअल ओव
इन्डियन बुद्धिक्म (स्टरसबगरं १८९६), रायस डविडस के बुद्धिज्मः इट्स हिस्टरी
एण्ड लिटरेचर' (लन्दन, १९१०) एवं बुद्धिस्ट इंडिया (लन्दन, १९०३) आदि
अनेकं ग्रन्थो मे मिलते हे । वंश-साहित्य पर डा० गायगर का 'दीपवंस एण्ड महावंस'
(अंग्रेजी अनुवाद, कोलम्बो १९०८) एक महत्त्वपूर्ण समालोचनात्मक ग्रंथ है।
अभिधम्म-पिटक के विषय का विवेचन करने वाले प्रबन्धों और ग्रन्थों में स० ज़ञ०
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