फूलो का कुरता | Phoolo Ka Kurta

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Phoolo Ka Kurta by Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है १५४ उसके छागे बढ़ने वाले कम के लिये जमीन मीजूद रहती थी परन्तु उत्तराई शुरू हो. जाने पर श्ारे बढ़ता झौर भी कठिन हो गया | चह गिरते-गिर्ते बचा । गिरता तो जाने कहाँ पहुंचता ? गला नम बाहिस्ते भर नीचे पढ़ेगा या गम भर या पचास हाथ पांध उपके तड़खड़ाते लगे आर चोटी का पसीना एड़ी तक बहने तागा | उसने भोले में से टाचं निकाल ली बलेम के सहारे एक-एक करमें उत्तरनें लगा । घने अंघेरे में ऐसी अजानी जगह सा सरसे की श्रपनी मूखता पर बह श्पने ापकों थिक्कारमे लगा पल पल परे रीक्ष छर चीते का ख्याल श्रा रहा था । ऐसे समय यदि जानवर था ज़ाय तो कैसे टाच और केसे बरलम थामकर उसका सामना करे ? सुना था जंगली जानवर झोदमी की से घबराते हैं । सोचा जोर जोर से गाये परन्तु मुख से शब्द न निकल पाया । बह सोचने लगा--पहाढ़ शेसी घुरी जंगदद र नहीं । देश देखना था. ती कलेकतता बस्चहें जाता । ज्रिजली की बत्ती की गे।ल-गोल रोशनी में एक पराइएडी उसका रास्ता कोदती हुई दिखाई दी । ऋष तक बह यों ही भटक रहा था | बह उतराई की आर चत पढ़ा. । एक घन्टे के करीब सेज़ बाल से चलने के बारे वह उस घने बन से बाहर निकल पायो । बन के घाहर ंचेरा हतना राहरा ने था । ्ाफाश में छाये उजले . बादेशों से - प्रकाश भी शारहा था घड़ी देखी--साऐे सात दी बजे थे । कुछ ही _ दूर भागे रोशनी के... घब्ने हीसे दिखाई दिये समझा गांव ागयां । बच धीसेनघीमें उसी श्रोर चलने लगा । सयः और चाल की तेजी फेम है तो पानी भरी पहाड़ी ददा शरीर में लगने से कंपनंपी आते सभी । उसने कम्वन छोड़ लियी आर शा पसे गांव की शोर बहुंसे. लेगी अपकिधित सरका पहडियों करे घर रात चिंताये को कल्पतों फिर शोरगेसें लगी । गांव चहुत छोटा था यहीं दस चारइ घर । भकोस सीखें छोटे पहाड़ी मकानों की तर मेंजिस + आर दचे हे कियाड़ों की कचाई सके । दूसरी कारपप बने जान वाली तिक ग मा समाई हुई 1 - रामशरण पहने दी मंक्र न के पाल पह वा था के एक कर सॉकसे होगा फिर दूसरा भोग फिर भहून से । कुत्तों




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