रत्नाकर शतक Vol 1 Ac 528 | Ratnakar Shatak Vol 1 Ac 528

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ছু रत्नाकर शतक में आत्मा का अधिष्ठान बताया है । शभ्राठवे में बताया है कि यह आत्मा कभी घूप से निम्तेज नहीं होता, पानी से गलता नहीं, तलवार से कटता नहीं, इसमें भूख-प्यास आदि बाघाएँ भी नहीं ह । यह बिलकुल शुद्ध, शान्त, युषप्वरूप, चैतन्य, ज्ञता, द्रष्टा हे । नोवे पय मे बताया है फि अनादिकालीन कमे सन्तान के कारण इस आत्मा को यह शरीर प्राप्त हुआ है । शरीर में इन्द्रियाँ हैं, इन्द्रियों से विषय ग्रहण होता है, विषय ग्रहण से नवीन कमं बन्धन होता है, इस प्रकार यह कर्म परम्पपा चली आती है | इसका नाश आत्मा के प्रथकत्त्व चिन्तन द्वारा किया जा सकता है। ভবন पद्य में आत्मा और शरीर के सम्बन्ध का कथन करते हुए उन दोनों के भिन्‍नत्व को बताया है। भ्यारहवे पद्म में बताया है कि भोग और कषायों के कारण यह आत्मा विकृत और कमरूपी धूल को ग्रहण कर भारी होता जा रहा है । स्वभावतः यह शुद्ध, बुद्ध और निष्कलंक है, पर वैभाविक शक्ति के परिणमत के कारण योग-कषाय रूप प्रवृत्त होती है, जिमसे द्वव्यकर्म और भाव कर्मों का संचय होता जाता है । बारहवें पद्य में भेदविज्ञान की दृष्टि को स्पष्ट क्रिया है। तेरहव पद्य म शरीर, घन, कुटुम्ब श्रादि की क्षणर्भगुरता को बत्तलाते हुए इन पदार्थों से मोह को दूर करने पर जोर दिया है । चौदहवें पद्य में बताया है कि यह मनुष्य शरीर नाशबान है, इसे प्राप्त कर




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