श्री उत्तराध्ययन सूत्र (1977) Ac 5201 | Utaradhyayan Sutra (1977) Ac 5201

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Utaradhyayan Sutra (1977) Ac 5201 by आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज - Acharya Shri Hastimalji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হিং ह है] उत्तराष्ययन सूत्र : पदयानुवाद पाकर. गुरजत का अनुशासन, ना विज्ञ शिष्य मत कोध करे । तज कषद्र संग ओर हास्य खेल, धारण कर शान्ति सदा विचरे ॥६॥ व्यवहार दृष्ट ना करे कभी, न व्यथं किसी से ब्र करे। नियत समय पर पाठ ग्रहण कर, बेठ अकेला ध्यान धरे ॥१०॥ कर चाण्डालोचित कर्म भिक्षु, सहसा न छिपाये उसे कहीं। यदि बुरा किया तो कहे बुरा, और नहीं किया तो कहे नहीं ॥११॥ - गलित अश्व सम गुरुः वचनो के, चाुकं की नाः चाह करे। ' आक्रीणं अश्ववत्‌ वचन-कशा को, देख पराप का त्याप करे ॥१२॥ इच्छानूक्रल व्यवहारी हो, और कायकुशलता से करते। रोष - भाव वाले गुरु को भी, मुनि विनयशील प्रमुदित करते ॥१३॥ बोले न बिना पूछे कुछ भी, पूछे भी मूठ नहीं बोले। आने पर क्रोध विफल कर दै, प्रिय अप्रिय सब धारण कर ले ॥१४॥ आत्मा को वश मे है करना, कारण आत्मा ही दुदंम है। इस भव परभव में सु पाता, जो दान्य आत्मा सज्ञत्र है॥१४॥ अपने द्वारा तप संयम से, दमन स्वयं का ই अच्छा) वध - बन्धन द्वारा पर - जन से, है दमन नहीं लगता अच्छा ॥१६॥ गुरुजन के श्रतिकुल आचरण, तन वाणी से करे नहीं। ज़न समक्ष या रहोभूमि में, ऐसा मन में धरे नहीं १७) বুল কী জম या पे, या समस्थान नहीं बेढे। शय्या से उत्तर दे न कभी, और जांव सटठाकर ना बेठे ॥१५॥ बेठे नहीं बाँध कर पलयी, पक्ष पिंष्ड से भी ना कहीं। সুফজল के सम्मुख अविनय से, जो पेर प्रसारण करे नहीं ॥१९॥




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