भारतीय इतिहास की भूमिका प्रथम भाग (1949) | Bharatiya Etihasa Ki Bhumika Vol-i (1949)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
362
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतीय इतिहास के आधार ११
नैतिक, सांस्कृतिक तथा व्यापारिक सम्बन्ध रहा है । लंका की
जनता, भाषा, धर्म और आचार-विचार में भारतीय तत्व पर्याप्त
मात्रा में पाया जाता है ।
(छ ) समुद्र . समुद्र ने दक्षिण की ओर से जहाँ भारतवर्ष
को घेर रखा है, वहाँ जल-मार्ग से एशिया के दक्षिणी-पूर्वी और
पश्चिमी भागों तथा अफ्रीका और यरोप से उसे जोड़ भी रखा है ।
इसलिए ससार कं व्यापार ओर यातायात का भारतवर्ष एक बहुत
बड़ा केन्द्र रहा है। प्राचीन काल में भारत का समुद्री व्यापार काफी
विकमित था । यहाँ के जहाजी बेड़े ब्यापार और उपनिवेश बसाने
के लिए दूसरे दंशों में जाया करते थे। पर्वी शिया, हिन्द-चीन
ओर पर्वी द्वीपसमूह भारतीय संस्कृति से प्रभावित थे । पश्चिमी
शिया, यरोप और अफ्रीका से भो भारतवर्ष का व्यापारिक और
सांस्कृतिक सम्बन्ध था। मध्ययग में अरबों और आधनिक यग में
यगोपियों ने इसी जल-मार्ग का अवलम्बन लिया और उनके आगमन
से भारतीय राजनीति और जीवन पर दरव्यापी प्रभाव पड़े ।
३ भारत के निवासी
विविधता और मिश्रण यह पहले कटा जा चका ই
किं भारतभूमि णक विशाल देश ह, जिसके अलग-अलग प्रान्तों में
विभिन्न प्रकार का जलवाय है। इसलिए आदिम काल से ही इसके
अलग-अलग खंडों में भिन्न-भिन्न प्रकार के लोग रहते आए हैं। जीवन
ओर सम्यता के विकास के साथ-साथ इन लोगों का यात्रा, व्यापार
उपनिवेश, यद्ध, श्रौर विवाहादि के नाते एक स्थान से दूसरे स्थान
में आना-जाना प्रारम्भ हआ | इसका परिणाम हुआ दंश में अनेक
रक्तों और जातियों का मिश्रण और इनके বাল से बनी हुई
भारतीय जाति। फिर भी भारत के भूखंडों में दूसर प्रान्तों के रक्त-
मिश्रण के बाद भी स्थानीय जातियों की प्रधानता है और ऐतिहासिक
अध्ययन के लिए उनको अलग-अलग रखा जा सकता दै । परन्त
यह न भूलना चाहिए कि भारतीय इतिहास के निमाण में सभौ
जातियों का हाथ है । सुविधा के लिए भारतीय जातियों का वर्गीकरण
नीचे लिखे अनुसार किया जा सकता है
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