भारतीय इतिहास की भूमिका प्रथम भाग (1949) | Bharatiya Etihasa Ki Bhumika Vol-i (1949)

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Bharatiya Etihasa Ki Bhumika Vol-i (1949) by डॉ. राजवली पांडेय - Dr. Rajwali Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीय इतिहास के आधार ११ नैतिक, सांस्कृतिक तथा व्यापारिक सम्बन्ध रहा है । लंका की जनता, भाषा, धर्म और आचार-विचार में भारतीय तत्व पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है । (छ ) समुद्र . समुद्र ने दक्षिण की ओर से जहाँ भारतवर्ष को घेर रखा है, वहाँ जल-मार्ग से एशिया के दक्षिणी-पूर्वी और पश्चिमी भागों तथा अफ्रीका और यरोप से उसे जोड़ भी रखा है । इसलिए ससार कं व्यापार ओर यातायात का भारतवर्ष एक बहुत बड़ा केन्द्र रहा है। प्राचीन काल में भारत का समुद्री व्यापार काफी विकमित था । यहाँ के जहाजी बेड़े ब्यापार और उपनिवेश बसाने के लिए दूसरे दंशों में जाया करते थे। पर्वी शिया, हिन्द-चीन ओर पर्वी द्वीपसमूह भारतीय संस्कृति से प्रभावित थे । पश्चिमी शिया, यरोप और अफ्रीका से भो भारतवर्ष का व्यापारिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध था। मध्ययग में अरबों और आधनिक यग में यगोपियों ने इसी जल-मार्ग का अवलम्बन लिया और उनके आगमन से भारतीय राजनीति और जीवन पर दरव्यापी प्रभाव पड़े । ३ भारत के निवासी विविधता और मिश्रण यह पहले कटा जा चका ই किं भारतभूमि णक विशाल देश ह, जिसके अलग-अलग प्रान्तों में विभिन्न प्रकार का जलवाय है। इसलिए आदिम काल से ही इसके अलग-अलग खंडों में भिन्‍न-भिन्‍न प्रकार के लोग रहते आए हैं। जीवन ओर सम्यता के विकास के साथ-साथ इन लोगों का यात्रा, व्यापार उपनिवेश, यद्ध, श्रौर विवाहादि के नाते एक स्थान से दूसरे स्थान में आना-जाना प्रारम्भ हआ | इसका परिणाम हुआ दंश में अनेक रक्तों और जातियों का मिश्रण और इनके বাল से बनी हुई भारतीय जाति। फिर भी भारत के भूखंडों में दूसर प्रान्तों के रक्त- मिश्रण के बाद भी स्थानीय जातियों की प्रधानता है और ऐतिहासिक अध्ययन के लिए उनको अलग-अलग रखा जा सकता दै । परन्त यह न भूलना चाहिए कि भारतीय इतिहास के निमाण में सभौ जातियों का हाथ है । सुविधा के लिए भारतीय जातियों का वर्गीकरण नीचे लिखे अनुसार किया जा सकता है




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