अनेकान्त-60,03 | Anekant-60,03
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
70
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अनेकान्त 60/3 13
भवन, व नृत्य देखने के लिए वर्धमान नामक नृत्यशाला निर्मित की थी।
तब नव प्रकार के उद्योग संचालित थे, जिन्हें त्रिलोकसार में नवनिधि
कहा गया है? निधि का समाजशास्त्रीय अर्थ उद्योगशाला है। इस
प्रकार आदिपुराण से स्पष्ट है कि तब लघु उद्योग के साथ-साथ भारी
उद्योग भी थे किन्तु छोटे पैमाने पर चलाये जाने वाले लघु व कुटीर
उद्योगों की प्रचुरता थी।
इस प्रकार आजीविका के लिए दुःखी एवं रस्त को षट् कर्मो का
उपदेश देकर ऋषभदेव ने उनकी जीविका व भरणपोषण सम्बन्धी
समस्याओं का समाधान किया। अतः उन्हें विश्व का प्रथम अर्थशास्त्री
कहा जाना कदापि असंगत नहीं होगा। वस्तुतः वे अर्थशास्त्र के
आदिप्रणेता हैं। उन्होंने एक अर्थशास्त्र की रचना की थी, जिसका
उन्होंने अपने पुत्र को अध्ययन कराया था।
आदिपुराण में वर्णित आर्थिक विचार
आदिपुराण के अध्ययन से ज्ञात होता है कि ऋषभदेव ने नगर,
ग्राम, पत्तन आदि की स्वना, लौकिक शस्त्रो का निर्माण, षट्कर्मों का
लोकव्यवहार ओर दयामूलक धर्म की स्थापना कर इस भूतल पर
सर्वप्रथम कर्मसुप्टि का प्रवर्तन किया था। इस प्रकार जौ लोग अभी तक
अलग-अलग रूप सं यत्र-तत्र फैले हए थे, वे ग्राम, नगरों आदि मेँ
सामूहिक सूप सं रहने लगे जिससे सहकारिता व पारस्परिक सहयोग
बढा। योग्यता के अनुसार आजीविका की व्यवस्था होने से श्रम-विभाजन
का प्रारम्भ हुआ और उपभोग, उत्पादन, विनिमय व वितरण सम्बन्धी
व्यवस्थायें सुस्थापित हुई। प्रत्येक वर्ण के लिए सुनिश्चित आजीविका से
लोगों में विश्वृंखलता नहीं फैली क्योंकि प॑ कैलाशचन्द शास्त्री के
अनुसार- प्रत्येक के लिए दो-दो कर्म निश्चित होगें अर्थात् असि और
মমি ভী आजीविका करने वाले क्षत्रिय, कृषि और वाणिज्य से आजीविका
करने वाले वैश्य ओर विद्या तथा शिल्प से आजीविका करने वाले शूद्र
कहे जाते थे । राज्य की व्यवस्था, पूर्ण रोजगार की स्थिति णवं
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