घर और बाहर | Ghar Aur Bahar

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Ghar Aur Bahar by श्री रविन्द्रनाथ ठाकुर - Shree Ravindranath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ का वास्तविक फल यही - होना चाहिये कि भारतवर्ष अपनों शप्ट्रोय आत्मा को पहचाने और समस्त संसार को अपना आध्यात्मिक सन्देश उद सरसं नादं! यह कन कवल कैष्-सखहनं शार त्याग द्वारा हां ध्राप्त हा सकता है 1 अन्य कोई उपाय नहीं है। केवल कड़े फूँकने और बन्देमातरम्‌ शुकारमे से काम न चलेगा! जैसा कि निखिलेश ने कहा है. “जो लोग देश को साधारण और सत्य भाव से देश समभ कर ... ... सेवा और भक्ति के लिए उत्साहित नहीं होते, जो लोग गुल मचा कर, माँ कह कर, देवो कह कर, मन्त्र पढ़ कर केवल उत्तेजना की खोज में रहते हैं डने लोगों के मन में देश-भक्ति का नहीं नशेबाज़ी का ध्यान रहता है।” दवाव और ज़बरदस्ती के रवि রাগ उतने विरुद्ध हैं जितने महात्मा गांधी । निखिलेश सन्दीप के सब अपराध क्षमा करता है पर जब सनन्‍्दीप डसकी शैयत के साथ दवाव और ज़बरदस्ती से काम लेने लगा तो उससे निःसज्लोच कह दिया कि अब तुम मेरे इला में न रह सकोगे। हमारे राजनीतिक आन्दोलन में जो हिंसा और उत्तोज़ना का अंश आगया है इसे रवि वादू पश्चिमी सम्यता का प्रभाव समभते हैं। चन्द्रनाथ লালু कहते हैं, “ न जाने यह पाप को महामारी कहाँ से हमारे देश में आ वसी हे!» * जिस सरलता, निष्पक्तता और साहित्यिक निपुणता से रवि बावू ने इन सिद्धान्तों को विचेचना की है उस का अन्दाज़ा पाठक सारी पुसुतक पढ़ कर हो कर सकते हैं। यहाँ इस विषय में कुछ अधिक स लिख कर अन्य दो चार बातों की आलोचना आवश्यक हैं।




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