मंजिल से पाहिले | Manzil Se Pahile

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Manzil Se Pahile by तुर्गनेव - Turgenevराजनाथ - Rajnath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रेम भी एकता उत्पत्त करता हँ-लेकिम यह प्रेम वहीं जिसके लिये धुम इस समय व्याकुंल हो रहे दो: आनन्‍्द का प्रेम सही, व्याम का प्रेम ।' दुजिन की मौह गाठे पड सई । न्यह्‌ अर्भनों के लिए ही ठीक है: भगर मैं सबसे १हले अपने लिए चाहता हूँ।” वययसे पहले अपने लिए,” बरपतिएनेव ने दुहृशया। जब कि में यह श्रमुभव करता हैँ कि प्रसेक व्यक्ति को अपना संपूर्ण जीवन दूसरों के लिए शगामा बाहिए। ःगगर प्रत्येक तुम्हारे वह्े अधुसार ही चले,” शुवित्र ने प्रतिधाद में अपना चेहरा सिकोड़ते हुए कहा, “तो अ्रनज्नास खाने के लिए कोई भी नहीं रहेगा--हरेक ऊर्हेँ क्रिसी दूसरे के लिए छोड़ देगा।! “इश्का सिर्फ यही श्र्थ निकलता है कि अ्रवनश्नास जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं में से नहीं है। कुछ भी हो, तुम्हें परेशान होने की जरूरत नदीं--हमेशा ऐसे व्यक्ति रहेंगे जिन्हें इसरों के मुह की रोटी छीमने में आनन्द आता 1 दोनों मित्र धुछ्ध देर खामोश ९हे। “उत्त दिब मेरी घुलाकात इस्सारोब से फिर हुई थी,” बरसिएनेव में कहता प्रारम्भ किया। “मेंगे उससे यहाँ आने के लिए कहा था। में तुमसे उसकी मुलाकात करवाने का पवका इरादा कर छुका ह और स्ताहोव' परिवार ते भी ' “पहु इन्सारोव कौन है ? श्रोह हां--वह सर्व या बलगेरिया वाला जिसके विपय भै दुभ मुभे वता रहै थे ? वह देशभक्त ? क्या यह वही है जो तुख्हारे दिमाग मै इनं सरे दैनिक विचारों को भरता रहता है 1” १६




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