मित्र के नाम पत्र | Mitra Ke Naam Patra

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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

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सुरेश चन्द्र शर्मा - Suresh Chandra Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मित्र ই গান ঘর... ৃ | | ` च, उपन्थासक्रार्‌ अकि का श्राद्र दो सहा था रौर उनकी. युद शपित विये गये मे । অজ সুভ पुरुष ने अपने गले से द्वार उतारा शोर अपने चरणों के पास बेडे एक तरण शेखक रवीन्माय ठाकुर के गले ন ভারা दिया । किंप बाबू का यह कृत अब सक्षी जगह उदार और उचित माचा गयो है । दुस्तर कठिनाइयों के बीच, जिसको. प्राप्त करने के लिये ओर सब घोर परिश्रम ` कर रटे मे, उस तक, अपनी सर्वश्रेष्ठ प्रतिमा की तेज -छलाँग से, रबीखेनाथ सहन ही पहुँच गये । कला के रादा को जे) पदक प्रु घले दिखा देते थे, उन्होने स्पष्टता के साथ देखा । साथ ही- अपनी बाद की रचनाओं मे, वह आपने पिता कै शआाध्यात्मिक सम्देश को और भी ক্যা ले गये हैं शीर অন্যটি स्थ 3 30४ „० ভাই নান সিনা का सदतं एवं सादगी थे आवारा दिया | । (ছি হাবিব र हु न: ঠা । धस के हुयी त पनन स्नाति আদি হিজর দ্ধ এন दुद सौर सद कृतितां में शत >पगी स्ताः बह गया है । क्लणि निरीक्षण मे দা आराम হনব का न्दः शुनि छ वक्त হাহা सि दनि क्री, रभा तं দাগ হাহ হু दयाय स £: कसते को; ` ই ও হার দিয় सन वर्ध दे को, वा पिप हैः । পট আহা পুশ রিলে 5 हक १ ट बचे | के; एक [121 य द एष क হলা। হা प घ 11 খালি এ




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