फिर निराशा क्यों | Phir Nirasha Kyon
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
96
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राक्थल ११
इन তা से सप्ट है क्रिंजो कुछ है, बढ़ मन के भीतर ही है,
' चाहर नहीं। इस मन को पाश्चाध्य बिद्वा्नों ने [12811891 श्रथति
' भस्यय-्वाद के वास से पुकारा है। परंतु पाशचात्य घिद्ठानों का
वलति) इतना भंभीर और रपट नहीं, जिसमा हसएरे
ऋषि-सहर्षियों का । उदाहरणतः उपय क्त उपनिषद्ञाफ्य देखें ।
सारा यष कि सुख-हुःख सन के बाहर नहीं है, बल्कि वे
हादिक भाव हैं, जिनके उद्गम और लग का कद हमारा मन ही
॥ एक, प्रेमी श्रवनी प्रेमिका के सुखे कलिय. विकट मेकट শীলা
और नेक दुःलों का सामना' करता है ; परंतु वह उन्हें. दुःख
नहीं समझता । इन दोनो व्यक्रियों के सन शल्य और उदारं भाषो
से अर्थात् श्रगाष श्रेध शरीर पेश-मक्ति से परिपूर्ण होते हैं । टस
कार्ण ज्ो दुपरों को द।वब' मालूम होता हे, वह इन्हें नहीं।
इससे सिद्ध हुए कि सुखदुःख कोई स्वयं - सत्ता ,२सनेबाले'
पदार्थ गहीं, बलिद्य हमारे मन. के साथ हैं, और भावों के! प्रष्ठा
शुष होया हमारे अधिकार के अंतर्तत है। हम अपने इस अधिक्कार _
को बहुत कमर काम में छाते. हैं । यदि यथोचित रीति से अपनी
'शक्ति काम में क्षाई: जाय, शो. हम दुख के भावों का अधेश' रोक
' सकते है, . और सुख की সংগা चाहे जितनी अधिक कर सकते हैं ।, .
ক্লোন গহ্বর আটা प्रभात्न न जानने से इस भगेक, दश्खों के घ्र,
षन जते आर यष समसे नगते हैं किये दुःझ्ष- कहीं बादइर से वषुः
हैं, और उसका रोकना अथा दुर करता हमत आक्रति स तदं है । |
चित्त कीः चत्तियो का रोकना योगास्त्र का पदसा उपदेशे,
इसका फल पूछे अनंदु-प्राप्ति हे ।. श्रीक्षष्ण' भगवान ने भी शीमज-.
, गंधदूगीता में कहे। है कि दु:ख का कारण हमारी चित्त-कृचियों की
আনান हीह} इनको ज्ञानी 'श्रात्मबद्ध से रोक सकता है| दुःख का.
জমান इंड्रियों के विषयों पर ध्यान देना है। इस पर ध्याने
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