यश:स्तिलक चम्पू | Yashastilak Champu

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Yashastilak Champu by सुन्दरलाल शास्त्री - Sundarlal Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपाधियाँ उनकी दार्शनिक प्रकाण्ड विद्वत्ता की प्रतीक हैं। साथ में प्रस्तुत यशस्तिलक के पंचम, पष्ठ व अष्टम आश्वास में सांख्य, वेशेषिक व चावोक-आदि दाश्षैनिकों के पूर्वपक्ष व उनकी युक्तिपूर्ण मीमांसा भी उनी विलक्तण व प्रकाण्ड दाशेनिकता प्रकट करती है, जिसका हम पू में उल्लेख कर आए हैं। परन्तु वे केवल तार्किकचूडामणि ही नहीं थे साथ में काव्य, व्याफरण, धर्मशाक्ष और राजनीति-आदि के भी धुरंधर विद्वान थे । कवित्व “-उनका यह 'यशस्तिलकचस्पृः महाकाव्य इस बांत का प्रत्यक्ष प्रमाण हि करि वै महाकवि थे और काव्यकला पर भी उनका असाधारण अधिकार था। उसकी प्रशंसा में स्वयं ग्रन्थकर्ता ने यत्र तत्र जो सुन्दर पद्य कह्दे हैं. वे जानने योग्य हैं?-३ :-- मैं शब्द और अर्थपूर्ण सारे सारस्वत रस ( साहित्यरस ) को भोग चुका हूँ; अतएव अब जो अन्य कवि होंगे, वे निगश्चय से उच्च्िष्टभोजी ( जूँठा खानेवाले ) होंगे--वे क्रोई नई बात न कह सकेंगे? | एन उक्तियों से इस बात का आभास मिलता है कि आचाये श्रीसोमदेव किस श्रेणी के कवि थे ओर उनका यह महाकांव्य कितना महत्त्वपूर्ण है. । महाकवि सोमदेव की वाकल्लोलपयोनिधि व कविराजकुआर-आदि उपाधियोँ भी उनके श्रेप्रकवित्व की प्रतीक हैं। धभाचायंस्वं--ययपि अभी तक श्री सोमदेवसूरि का कोई खतंत्र धार्मिक अन्थ उपलब्ध नहीं है परन्तु यशस्तिलक के अन्तिम तीन आश्वास (६-८), जिनसें उपासकाध्ययन (आ्रावकाचार) का साह्लोपाड्न निरूपण किया गया हे एवं यश० के चतुर्थ आश्वाप्त में वेदिकी हिंसा का निरसन करके अहिंसातत्त्व की सार्मिक व्याख्या की गई हे , इससे उनका धर्माचायेत प्रकट होता हे । राजनीतिज्ञवा-श्री सोमदेवसूरि के राजनीतिज्ञ होने का प्रमाण उनका 'नीतिवाक्याम्र॒तः तो है ही, इसके सिवाय यशस्तिलक के तृतीय आश्वास में यशोधरमदाराज का चरित्र-चित्रण करते समय राजनीति की विस्तृत चर्चा की गई है। उक्त विषय हम पूवे में उल्लेख कर आए हैं। विशाल अध्ययन--यशस्तिलक व नीतिवाक्याझृत अंथ उनका विशाल अध्ययन प्रकट करते हैं। ऐसा जान पड़ता है कि उनके समय मे जितना भी जैन व जैनेतर साहित्य ( न्याय, व्याकरण, काज्य, नीति, व दर्शन-आदि ) उपलब्ध था, उसका उन्होंने गम्भीर अध्ययन किया था। स्याष्टादाचरसिंह-तार्दिकचक्रवर्ति-वादीभपंचानन-वाक्षठोरपयोनि धि-कविकुकराजप्रभृतिप्रशस्तिपक्षस्तालश्कारेण, षण्णवति - पकरणनुक्तिचिन्तामणिू्न-महेन्मातकिसजत्प-यशोधस्महाराजचरितमहाशाखरवेधसा श्रीसोमदेवषूरिणा विरचितं (नीति- वाक्यामृतं) समाप्तमिति । --नीतिवाक्याश्रत १, देखिए শ্রহাণ भा० १ स्लोक नं १४। २, देखिए भा० १ इलोक नं १४, १८, २३ 1 ३, देखिए ० २ श्लोक नं ° २४६) आ० ३ इलोकं नं ० ५१४ ४. मया वागर्थसंभारे मुक्ते सारस्वते रसे । फवयोऽन्ये भविष्यन्ति नूलमुच्छि्टमोजना ॥ चतुथे घा रज १६५ |




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