आल्हा -खण्ड | Alha- Khand

Alha- Khand by Parmal Raso

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है सेंयोगिनिस्वयम्बर । चल कहि ये बातें परशुराम सों सुनिके बातें निज माताकी विजयपत्र जो लिखिदेवें नाहिं तो ठरिहों ना संगर ते सुनिके बातें ये भीष्म की तब तो गंगा परशुराम सां लरिका बिजयपत्र को बिजयपत्र अब याकों दीजे सुनिके बिनती बहू गंगाकी बिजयपत्र ले तहेँ भीपमने माथ नायके फिरि गंगा को परशुराम निज आश्रम गमने चित्र बिचित्रवीय्य॑ रहें राजा तेऊ मरिे विनापुत के पांड॒ बिहुर तिनलरिका अँधरे केरे इय्यॉधिन में दोऊ मिलिके संगर ठान्यों भयो परीक्षित फिरि दिल्लीपति कलियुगआयो त्यद्दी राज में को कलियुग के ऐसी दिल्ली की रजधानी रूपउजागर सब आगर नित प्रति पूजे शिवशंकर का गदका बाना पठा बनेठी है फिरि बहुपुत्र सिखावनदीन ॥ भीषमकहाबचनछलहीन १०० तो दम लोटि घामको जायँ ॥ चहुतनधजीघजीउड़ि जाय १०१ औओ दठ दीष ठरे को नाहिं ॥ बोलीहाथजोरित्य हिठाहिं १०२ रो जमदर्नितनय महराज ॥ की जैआपशिष्यकोकाज १०३ तबतिनविजयपत्रलिखिदीन ॥ ओ पैलगी गुरूको कीन ९०४ भीषम दीन्दयों शंख बजाय ॥ भीषम घरे पहुंचे आय १०४. भीषमकेर छोट दोउभाय ॥ तिनघरब्यास पहुंचे आय १०६ जिनकारहा जगतयशलाय ॥ पांडकेमये युधिष्ठिराय १०७ तहूँ सब क्षत्री गये बिलाय ॥ ज्यहागवतसुन्योइषोय ९०८ ओ महराज कनोजीराय ॥ हमरे बूत कही ना जाय ९०६. जामें बसे. पिथोराराय ॥ शोभाकही तासु ना जाय ११० नाहर दिल्ली का सरदार ॥ इनमबिहुतभांतिहुशि यार १११




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