पाओलो फ्रेरे का शैक्षिक चिन्तन एवं भारतीय परिदृश्य में इसकी प्रासंगिकता | Pawolo Frere Ka Shaikshik Chintan Evm Bhartiya Paridrishya Mai Iski Prasangikata

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Pawolo Frere Ka Shaikshik Chintan Evm Bhartiya Paridrishya Mai Iski Prasangikata  by राजेश छाबड़ा - Rajesh Chhabra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कि वर्तमान व्यवस्था पूर्ण रूप से परिवर्तन चाहती है। जब तक सामाजिक व्यवस्था में मौलिक परिवर्तन नहीं आयेंगे, सकारात्मक परिणाम मुश्किल होंगे। डा0 दीक्षित एवं शाह” का मत है कि देश के अन्दर लाखों परिवारों में सुबह का सूरज उदय होते ही रोटी की चिन्ता प्रारम्भ हो जाती है। अगर वे अपने बच्चों को स्कूल भेजना समय बर्बाद करने के बराबर समझें तो इसमे उनका क्या दोष है। उनके लिए तो पहली आवश्यकता रोटी ही है।.... निर्धन लोगों की व्यवस्था शिक्षा के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बन गयी है। प्रो0 सदगोपाल” कहते हैं कि स्कूली शिक्षा तथा प्रौढ़ साक्षरता अभियानों द्वारा साक्षरता दर की वृद्धि में किये गये योगदान के बीच बुनियादी अन्तर है- जबकि स्कूली शिक्षा के जरिये साक्षरता में होने वाली वृद्धि टिकाऊ होती है, प्रौढ़ शिक्षा अभियानों द्वारा लायी गयी वृद्धि अनिश्चित और गैर-टिकाऊ होती है। वे आगे कहते हैं कि दुर्भाग्य से प्रौढ़ शिक्षा अभियानों पर केन्द्रित किये गये राजनीतिक सरोकार सबसे नकारात्मक प्रभाव शिक्षा के राष्ट्रीय नजरिये पर पड़ा है। बढ़ते क्रम में शिक्षा को साक्षरता के साथ ध्वनित किया गया और ऐसा करते हुए यह अनदेखा किया गया कि साक्षरता शिक्षा के प्रभाव का मापन करने वाले मापदण्डों में से मात्र एक मापदण्ड भर है। शिक्षा समाज का एक उपांग है, स्वतन्त्र कारक नहीं। अतः भारत के सभी वच्चो के लिए उम्दा गुणवत्ता वाली शिक्षा उपलब्ध करवाने का संघर्ष अभिन्‍न रूप से गरीबी, कुपोषण एवं बीमारियों के खिलाफ चलने वाले संघर्षों से जुड़ा हुआ है। इस सम्बन्ध मे यह स्वीकारना होगा कि विषमता, निर्धनीकरण ओर शोषण जैसे बुनियादी सामाजिक कारकं की जवहेलना करके हम कभी भी सभ्य ओर शांतिमय मानवीय समाज बनाने की कल्पना नहीं कर सकते।




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